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कविता: सर्तक भारत, समृद्ध भारत (योगिता चौरसिया, मंडला, मध्य प्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार योगिता चौरसिया की एक कविता  जिसका शीर्षक है “सर्तक भारत, समृद्ध भारत”: 

सर्तक भारत ही, समृद्ध भारत कहलायेगा।
संभल संभलकर चलेंगे, स्वर्णिम भारत बनेगा।।
                      
स्वर्णिम भारत का फिर, स्वर्णिम इतिहास रचेगा।
सोने की चिड़िया सा, भारत फिर बन पायेगा।।
 
महामारी की बीमारी, आपदा बनकर आयी हैं।
जड़ से मिटायेंगे, सर्तकता को हथियार बनाये हैं।।
 
मुँह, नाक को ढककर, हम चलते ही रहेंगें।
दूर-दूर रहकर, सोसल डिस्टेंटिग बनायेंगे।।
 
बार - बार हाथ धोते रहेगें, हाथ नहीं मिलायेंगे।
अपनी संस्कृति, सभ्यता अपनाकर  प्रणाम करेंगे।।
 
ज्यादा जरुरत होने पर ही, हम घर से बाहर जायेंगे।
सारे त्यौहारों को हम सभी, घर मे ही रहकर मनायेंगे।।
 
रामायण, गीता का ज्ञान, हैं वेदशास्त्र महापुराण।
त्याग, धर्म, संस्कृति, सभ्यता हैं गुणों की खान।।
 
सभी धर्मो कीअनेकता मे, एकता भारत  की पहचान।
पूरे विश्व में हैं बज रहा डंका, मेरा भारत देश हैं महान्।।