पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रंजना बरियार की एक कविता जिसका शीर्षक है “आस्था का घृत”:
ज़िन्दगी मेरे घर
आना ...
जीवन के दीपों
में
आस्था का घृत मैं
डाले रहूँगी .....
दीपमालिका से
पूजा की
थाली मैं सजाए रहूँगी .........
भावों के अक्षत
ले हाथों में
अश्को से आचमनी
मैं तुम्हारी करूँगी .....
ज़िन्दगी तुम
मेरे घर आना ....
मेरे घर का इतना
ही पता है,
आस्था का दीपक
लिए मैं खड़ी हूँ ....
घनघोर तिमिर की
घटा तो है,
पर उर का दीपक जलाने
में लगी हूँ ....
जुगनुओं की
क़तारें सजने लगी हैं,
रौशनी दिखाने वो
आने लगी हैं .......
ज़िन्दगी तुम
मेरे घर आना .....
है तो यहाँ
इत्रों में बाधाएँ पड़ी,
चंदन के शजर में
भुजंगें हैं लिपटी ......
चंदन को ग्राह्य
नहीं भुजंगों के विष,
केतकी केसर से
पुष्पांजलि करूँगी ......
दीपों में आस्था
का घृत डालें मिलूँगी,
ज़िन्दगी मेरे घर
बिन आए रूक न सकोगी ....
ज़िन्दगी मेरे घर
बिन आए रूक न सकोगी .....