पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सपना की एक कविता जिसका
शीर्षक है “कितना निर्दय हुआ इंसान”:
हाय दुर्दशा कैसी हो गई तेरी धरती मां,
अपने स्वार्थ की खातिर देखो,
कितना निर्दय हुआ इंसान....
काट के जंगल सारे देखो,
कितना निर्दय हुआ इंसान....
पाप ये इनको नजर ना आए,
कितना निर्दय हुआ इंसान।
कितनी बेरहमी से देखो,
कितना निर्दय हुआ इंसान.....
हाय दुर्दशा कैसी हो गई तेरी धरती मां,
वृक्षों बिन छाया ना होवे,
कितना निर्दय हुआ इंसान।
कितनी निर्ममता से देखो,
कितना निर्दय हुआ इंसान......
भूख प्यास से तड़प रहे सब,
कितना निर्दय हुआ इंसान.....
बिन पेड़ों के बचे ना जीवन,
कितना निर्दय हुआ इंसान.....
वृक्ष बिना बरसात हो कैसे,
कितना निर्दय हुआ इंसान।
मां रूठ गई तो सोचो जरा ये,
कितना निर्दय हुआ इंसान.....