Welcome to the Official Web Portal of Lakshyavedh Group of Firms

कविता: फूल खिले हैं रेगिस्तान में (बंदना पंचाल, अहमदाबाद, गुजरात)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार बंदना पंचाल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “फूल खिले हैं रेगिस्तान में”: 

फूल खिले हैं रेगिस्तान में
मैं गर्दिश पर शोक मनाऊं कैसे?
खो बैठे हैं जो सुख की आस
उन लोगों को समझाऊं कैसे?
 
सांझ के बाद होता है सवेरा,
बेघर खग को मिलता है बसेरा,
संघर्ष कर और बढ़ आगे
फिर देख भाग्य जागेगा तेरा।
 
आती है बहार पतझर के बाद
यह बात उन्हें सिखलाऊं कैसे?
खो बैठे हैं जो सुख की आस
उन लोगों को समझाऊं कैसे?
 
यूं हार मानना ठीक नहीं
डर कर यूं भागना ठीक नहीं,
तुझे मिलेगी जीत  बस कर्म कर
हथियार डालना ठीक नहीं,
 
खिलती है चांदनी अमावस के बाद,
ये सुंदर दृश्य दिखलाऊं कैसे?
खो बैठे हैं जो सुख की आस
उन लोगों को समझाऊं कैसे?