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कविता: मैं बंजारा (विक्की चंदेल “चंदेल साहिब”, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार विक्की चंदेल चंदेल साहिब की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मैं बंजारा”: 

मैं पथिक मैं आवारा!
मैं बंजारा मैं बेचारा!!
मुझे सबक़ क्या ख़ूब मिला!
कोई सख़्श रुबरु न मिला!!
गुज़रा तन्हा ज़िधर से भी मैं!
ख़ाली कोई मकां न मिला!!
थका परेशाँ भी बहुत हुआ!
सफ़ऱ में हमसफ़र न मिला!!
मन किया प्यास बुझा लूँ!
मग़र मुझे कोई घट न मिला!!
पहुंचा ज़ब शहर की गलियों में!
आसमाँ का अलग रंग मिला!!
क़दम आगे पड़ा शज़र मिला!
उस पर कोई परिंदा न मिला!!
सोचा थोड़ा दर्द बांटता चलूँ!
सुनने वाला कोई इंसान न मिला!!