पश्चिम बंगाल
के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार विक्की चंदेल “चंदेल साहिब” की एक कविता जिसका
शीर्षक है “मैं बंजारा”:
मैं पथिक मैं आवारा!
मैं बंजारा मैं बेचारा!!
मुझे सबक़ क्या ख़ूब मिला!
कोई सख़्श रुबरु न मिला!!
गुज़रा तन्हा ज़िधर से भी मैं!
ख़ाली कोई मकां न मिला!!
थका परेशाँ भी बहुत हुआ!
सफ़ऱ में हमसफ़र न मिला!!
मन किया प्यास बुझा लूँ!
मग़र मुझे कोई घट न मिला!!
पहुंचा ज़ब शहर की गलियों में!
आसमाँ का अलग रंग मिला!!
क़दम आगे पड़ा शज़र मिला!
उस पर कोई परिंदा न मिला!!
सोचा थोड़ा दर्द बांटता चलूँ!
सुनने वाला कोई इंसान न मिला!!