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कविता: मौसम नहीं मल्हार का है (बंदना पंचाल, अहमदाबाद, गुजरात)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार बंदना पंचाल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मौसम नहीं  मल्हार का है”: 

ऋतु है यह शीत लहर की
पल ये पर्व - त्योहार का है।
हट जा तू ,ए काले मेघा
मौसम नहीं मल्हार का है।
      कारी बदरी भटक गई है
     जल बरसाकर चहक रही है।
     जहां चमकती ओस की बूंदें
     सौंधी मिट्टी वहां महक रही है।
फ़सल लहराने का मौसम है
समय नहीं बौछार का है।
हट जा तू ए काले मेघा
मौसम नहीं मल्हार का है।
       जरा बताना,मुझको पावस
       किसने निमंत्रण तुझे दिया।
       अपने घर तू लौट जा मेघा
       मां ने तुझको याद किया।
शोकमग्न बैठा किसान है
ये समय तो हर्ष बहार का है।
हट जा तू ,ए काले मेघा
मौसम नहीं मल्हार का है