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कविता: बिन संघर्ष के (प्रहलाद मंडल, गोड्डा, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रहलाद मंडल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बिन संघर्ष के”:

नदियों जब बहती खलखल खलखल,

आते हैं बहुत उसको भी अड़चन।

वो भी अपना संघर्ष दिखाकर,

अपना किनारा ढूंढ लेती है।

 

पक्षी भी जब भरती उड़ान आसमान के,

उनके भी घोंसले को कई बार गिराई जाती है।

नही मानती वो हार कभी,

फिर से अपना संघर्ष दिखाकर

अपना घोंसला बना लेती है।

 

बिना संघर्ष होते हैं सब मानों,

जैसे पहाड़ों के  पड़ा एक चट्टान ।

पड़ते ही हथौड़ा संघर्ष का उनपर,

वो अपना आकार भी दिखाता है,

कभी कभी भगवान भी कहलाता है।

 

संघर्ष में जितनी अड़चनें आती है,

सफलता उतनी ही बड़ी हो जाती है।

बिना संघर्ष के कहां कोई,

सफल जीवन  को  पाया है।