पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सुभासिनी गुप्ता की एक कविता जिसका
शीर्षक है “जब मन हारने लगे”:
कभी
किसी पक्षी को
घोंसले की नींव बनाते
देखा है
अथक परिश्रम
करके
तिनका - तिनका बटोर
करके
वो पक्षी अपना घोंसला
बनाता है
अपनी संतान के लिए
एक
सुरक्षित घर बनाता है
और
फिर कहीं से तीव्र आंधी
आती है
भारी वर्षा होती है और
उसका घोंसला
तिनका - तिनका कर के बिखर
जाता है
फिर वह पक्षी क्या
करता है
वह रोता नहीं है न ही विलाप
करता है
वो बिना विलम्ब करे
फिर से
अपना घोंसला बनाना
प्रारंभ कर
देता है और सफलता प्राप्त
करता है
फिर हम क्यों छोटी - छोटी असफलता से
भयभीत
होकर परिश्रम करना छोड़ देते हैं
एक बात
सदा स्मरण रखियेगा कि
वृक्ष
कुल्हाड़ी की एक मार से नीचे नहीं
गिरता
हर चट्टान घन के
एक
प्रहार से नहीं टूटते।
सफलता
पाने के लिए अनवरत
परिश्रम
करना ही मात्र एक मार्ग है