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कविता: ढूँढते फिरोगे (भावना ठाकर, बेंगुलूरु, कर्नाटक)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार भावना ठाकर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “ढूँढते फिरोगे”:
 
कसक जब साथ बिताएं हसीन लम्हों  की याद आएगी तब,
ज़िंदगी की किताब के हर पन्नों पर हमसे वाबस्ता इश्क के फ़साने ढूँढोगे।
 
नादाँ मेरे महबूब अकेले में तड़पते गुज़रा हुआ ज़माना ढूँढोगे
हम है तो वीरानियों में भी बहार ए चमन है,
ना रहेंगे हम तो मौसम ए बारिश की फुहार ढूँढोगे।
 
जा रहे हे रुख़सत जो दे रहे हो आज अपनी महफ़िल से हंस हंसकर,
कल दिल बहलाने की ख़ातिर हमें  लगातार ढूँढोगे।
 
बेख़बर हो हुश्न ए रौनक के नूर से तुम,
उदास रातों में इन आँखों का नशा पाने मैख़ाने की दहलीज़ ढूँढोगे
 
बरसों का मोह है चंद पलों की दिल्लगी नहीं भूल पाओ तो भूला देना,
भूलाने की कोशिश में हमें और करीब पाओगे
तब अश्क जम जाएंगे ख़्वाबगाह में रोने के बहाने ढूँढोगे।
 
चाहा है तुम्हें चाहत की हद से गुज़रकर हमने रोम रोम भरकर, साँस साँस छनकर,
ढूँढने पर भी जब नज़र ना आऊँगी तब मचलकर मौत के बहाने ढूँढोगे।