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कविता: सरहदें (विक्की चंदेल “चंदेल साहिब”, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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सरहदें न होती,
         कितना अच्छा होता।
सोचो अग़र ये,
         सरहदें न होती।
 
सरहदें न होती,
           तो क्या होता।
न कोई झगड़ा,
           न फ़साद होता।
 
एक सी होती,
          अपनी ये धरती।
सभी जगह होता,
          एक सा आसमाँ।
 
न कोई होता,
          अपना व पराया।
न किसी बात,
          का डर होता।
 
न खेलते हम,
       ख़ून की होली।
न कहीं आग,
       की होती दिवाली।
 
न कोई राम,
          न रहीम होता।
सब का मालिक,
          बस एक होता।
 
न कोई बेटा,
         क़भी शहीद होता।
न कोई परिवार,
         क़भी अनाथ होता।
 
नदियों की धारा,
            बहती ही रहतीं।
क़भी कहीं कोई,
            मोड़ न पाती।
 
पिंजरे के सब,
        पँछी भी कहते।
सरहदें न होती,
        कितना अच्छा होता।