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कविता: हमें आत्मनिर्भर बनना होगा (नीतू झा, गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नीतू झा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हमें आत्मनिर्भर बनना होगा”: 

जीवन की इस संतप्त व्यथा से
मुस्कुराकर लड़ना होगा,
कोरोना से आये कसक को
कोशिशों मे बदलना होगा।
जुगाड़ हमारी विशिष्टता है
इसे रोजगार में बदलना होगा
छोटे छोटे कदम बढ़ाकर
हमें आत्मनिर्भर बनना होगा।
उठो हे भारतवासी !!!
सजग हो, आत्म - मंथन कर
बुद्धि - विवेक के बल से कठिन परीक्षा सफल कर।
आत्मनिर्भर बनने का हुनर है हममें,
ये दुनिया को बताना होगा
एक - दूसरे का हाथ थामकर
कुछ अद्भुत कर दिखाना होगा।
प्रारंभ तो कर दिया है हमने
पूर्ण भी हमें ही करना होगा
कोशिशों की कलम में
मेहनत की स्याही भर
हमें अपना भविष्य खुद लिखना होगा
भारत का हर पुरुष लौह पुरुष है
और हर नारी है लौह परी
दुनिया को ये दिखाना होगा
हमें आत्मनिर्भर बनना होगा।
हमारी संस्कृति तो
राम और कृष्ण की छाया है,
एक ने चौदह वर्ष वन में बिताया
दूसरे ने कारागार मे ही जन्म  पाया है,
सुन लो भारत के दुश्मन !!!
तेरी क्या बिसात ?
हमें तो हमारे ईश्वर ने ही
कठिन समय में निखरना सिखाया है।
भारत के राष्ट्रीय ध्वज ने भी
चरखे से चक्र तक का सफ़र तय किया है
हमने विपरीत समय में भी हरदम
काबिलियत सिद्ध किया है।
माँ भारती की संतान हैं हम
अपना कर्ज चुकाएँगे
कुटिर उद्योगों को बढ़ाकर,
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बनाकर दिखाएँगे
सोने की चिड़िया है भारत
इसके लिये स्वर्ण अम्बर बनायेंगे,
हम आत्मनिर्भर बनकर दिखाएँगे।