पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अभिषेक पाण्डेय की एक कविता जिसका शीर्षक है “कर्मफल”:
वह देख रहा
तुमको बहुत करीब
से
तुमको नहीं मालूम
वो कितना
तुम्हारे करीब है,
फिर भी मौन
वे निरंतर देखता
ही जाता है,
तुम्हारे
कुकर्मों को।
वह देख रहा कि
क्या किया तुमने
उसके दिए हुए वन - नदी
और वृक्षों के
साथ,
और अभी भी तुम
क्या कर रहे
उसकी स्थापित
मानवता
और एकता के साथ।
आह ! तुमने तो
कुछ भी नहीं छोड़ा
सबको मार दिया
करुणा, दया, क्षमा
इनका गला तो
न जाने तुमने कब
का
घोंट दिया।
अब तक तुम वही
करते आए
जो तुम्हारे अहं
ने कहा
क्योंकि हे मानव!
तुमने सदा इसे ही
अपना
सर्वस्व माना ..।
वो अभी भी देख
रहा है ..
पर ये क्या आज
तुम
इतने बेचैन क्यों
हो?
और यह सर्वत्र
सन्नाटा क्यों है ?
शायद तुम जा चुके
हो
अंधकार रूपी उन
गुफाओं में
जहाँ से तुम्हारे
चीत्कार को
सुन पाने में मैं
खुद को
असमर्थ पाता हूँ।
काश ! मैं सुन पाता
जिस प्रकार उन
निरपराध
बेजुबान जीवों की
करुण पुकार
मेरे हृदय को चीर
जाती थी।
जिनको न तुमने
सिर्फ तड़पाया ही
बल्कि पीड़ादायक
मौत भी दी और तो
और
उन्हें अपना भोजन
तक बना डाला !
वाह रे इंसान ! एक उत्तर दोगे ?
मैंने तो तुम्हें
ऐसा नहीं बनाया
कहाँ से पायी यह
प्रवृत्ति ?
खैर छोड़ो !
अब देखो मुझ पर
लांछन न लगाना कि
मैं
कुछ कर क्यों
नहीं रहा ..
मैं पहले भी चुप
था
और अब भी चुप हूँ ..।
पर कर्मों का
चक्र कब रुकता है ?
मैं पहले भी
देखता था, अभी भी
देख रहा हूँ,
वास्तव में ईश्वर
हूँ
मैं भी अपना कर्म
कर रहा हूँ।
पर वक़्त अब फल का
है
और यही है
तुम्हारे किये हुए
समस्त कार्यों का
फल,
तुम्हारा कर्मफल ..!


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