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कविता: हिन्दी की महिमा (डॉ● दिलीप कुमार झा, हाबड़ा, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉदिलीप कुमार झा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हिन्दी की महिमा”: 

जनजन की प्यारी हिन्दी

भारतमाता के माथे की बिन्दी हिन्दी

संस्कृत देववाणी से विकसित हिन्दी

देवों की नगरी से निकली लिपि

देवनागरी कहलाती है।

 

हिन्दी भाषा देवनागरी में लिखी जाती है।

हिन्दी जन जन की ज़ुबान है।

हिन्दी की महिमा महान है।

 

लिखने, पढ़ने, बोलने में है मधुरता

तत्सम, तद्भव, देशी, विदेशी

शब्दों में है सहजता

भारत की एकता की पहचान है।

हिन्दी की महिमा महान है।

 

हिन्दी जन जन की ज़ुबान है

शब्द मोती की तरह चमकते,

अर्थ हीरे की तरह चमकते,

हिन्दी निर्झरिणी की तरह प्रवाहमान है।

हिन्दी की महिमा महान है।

फ़ेसबुक, यूट्यूब, कम्प्यूटर, ट्यूटर

पर छा गयी है हिन्दी,

रोज़ी रोज़गार की भाषा बन गयी है हिन्दी,

कवियों कविताओं का भंडार है।

हिन्दी की महिमा महान है।

विश्व में ज़लता रहे हिन्दी का दीपक,

घर घर में ज़लता रहे हिन्दी का दीपक

ज़न ज़न देता रहे सम्मान।

हिन्दी की महिमा है महान।