पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी
जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका
स्वागत है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “रश्मि मिश्रा” की
एक कविता जिसका शीर्षक है “हिंदी की व्यथा”:
किसने कहा कि छल करती है
इंग्लिश हिंद के आंगन में!
सच क्या है, अपना मुख देखो
जाकर उजले दर्पण में!!
कैद किया है खुद
को हमने
भाषायी दीवारों में!
बने राष्ट्र का गौरव हिन्दी
जोश नहीं सरकारों में!!
लोकतंत्र के
संविधान का
इक पन्ना अब भी खाली!
राष्ट्र को भाषा दे नहिं पाए
ये भारत की बदहाली!!
संसद सत्र शुरू
होते ही
मुद्दे कई उठाते हैं!
मुद्दा उठे राष्ट्र भाषा का
अधर मौन हो जाते हैं!!
अंग्रेजी में बातें
करके
छाती खूब फुलाते हो!
गर्व नहीं अपनी भाषा पर
मन ही मन शरमाते हो!!
इक दिन हिन्दी
दिवस मनाकर
एक वर्ष तक सो जाओ !!
एक तरफ हिन्दी को रख कर
अंग्रेजी में खो जाओ!!
हिंन्दी दिवस
मनाने वालो
हिन्दी कैसे छाएगी??
कथनी-करनी में जब तक
नहीं साम्यता आएगी!!
किसने कहा कि छल करती है
इंग्लिश हिंद के आंगन में!
सच क्या है, अपना मुख देखो
जाकर उजले दर्पण में!!
भाषायी दीवारों में!
बने राष्ट्र का गौरव हिन्दी
जोश नहीं सरकारों में!!
इक पन्ना अब भी खाली!
राष्ट्र को भाषा दे नहिं पाए
ये भारत की बदहाली!!
मुद्दे कई उठाते हैं!
मुद्दा उठे राष्ट्र भाषा का
अधर मौन हो जाते हैं!!
छाती खूब फुलाते हो!
गर्व नहीं अपनी भाषा पर
मन ही मन शरमाते हो!!
एक वर्ष तक सो जाओ !!
एक तरफ हिन्दी को रख कर
अंग्रेजी में खो जाओ!!
हिन्दी कैसे छाएगी??
कथनी-करनी में जब तक
नहीं साम्यता आएगी!!