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कविता: आत्मसम्मान (सुनीता कुमारी, पूर्णियाँ, बिहार)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “सुनीता कुमारी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “आत्मसम्मान”:

 
हर सम्मान से पहले,
आत्मसम्मान जरूरी है।
विधाता ने जीवन दिया,
इस जीवन का मान जरूरी है ।
 
आत्मसम्मान के बिना ,
राजा रंक बना फिरता है ।
आत्मसम्मान से भरा रंक ,
राजा की तरह जीता है ।
 
आत्मसम्मान यदि मरता है,
इंसान मन से मर जाता है।
निभाता है वह हर रिश्ता ,
खुद मन से मर जाता है।
 
हर रिश्ते से बढ़कर रिश्ता,
खुद से है खुद का होता हैं।
आत्मा परमात्मा का धन है,
सुरक्षा पहले है तन मन का।
 
आत्मसम्मान से भरा यह मन ,
हर रिश्ते में खुश रह लेता है,
समर्पण रिश्तो में करने से पहले ,
समर्पित खुद को करता है ।
 
आत्मसम्मान के बिना,
मनुष्य पशु बन जाता है।
गैरो को छलने से पहले,
हरदिन खुद को छलता है।
 
भोजन और जल की तरह।
वायु और आयु की तरह ।
आत्मसम्मान का सम्मान करे,
संतोषप्रद हो जीवन ,
इस जीवन का सम्मान करे