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कविता: कारगिल विजय (बिवेक कामी, गंगुटिया चाय बगान, कालचिनी, पश्चिम बंगाल)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार बिवेक कामी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “कारगिल विजय”:

 
कारगिल की घाटी गुजी
भारत माता के जयकारे से
पाक यह तेरी गलत नियत
चकनाचूर किया सेना नै
पाकिस्तान की रूह कांपी थी
जब कारगिल पर तिरंगा फहराया था।
 
पाक तु जब गलत नियत लेकर
कारगिल जो आया था,
भूल गए जब शास्त्री जी ने
तूमे लाहौर तक भगाया था
हमारे जवानों ने तब खुशियां मनाई
जब कारगिल पर तिरंगा फहराया था।
 
हिमालय से ऊंची पर्वत पर
जब युद्ध हुआ भिष्म था
५०० से ज्यादा सेर खोये हमने
योद्धाओं ने अपना वादा निभाया था
जब तिरंगा में लिफ्ट कर घर आया था
फिर भी परिवार ने खुशियां मनाया था
जब कारगिल पर तिरंगा झंडा फहराया था।
 
१८०० फीट पर जब लड़ी लड़ाई
सब सैनिक एक स्वर में कसम जो खाई
पाक को हरा कर सैनिक ने पुरी कि लड़ाई
तब कारगिल पर तिरंगा फहराएं गई।
 
में कारगिल के युद्ध के सपनों में खोया हु
यह कविता लिखते लिखते कई बार रोया हु
जिस परिवार ने अपना जवान बेटा खोया है
बाप ने जवान बेटा के अर्थी को कंधा पर धोया है
मां के दूध भी जमीन पर उतर आया होगा
जब बेटे के अर्थी को गोद में लिया होगा,
वह पत्नी भी तब रोया होगा
जब मेनदी लगी हाथ से उसने
सिन्दूर अपना धोया होगा।
उनको भी वह पल याद आया होगा
जब उसने पत्नी के गले में मंगलसूत्र डाला होगा
आज यह देख उसकी आत्मा रोया होगा
जब उसके पत्नी ने मेंन्दी वाले हाथ से
अपना मंगलसूत्र उतारा होगा।
 
कारगिल की घाटी गुजी
भारत माता के जयकारे से
पाक यह तेरी गलत नियत
चकनाचूर किया सेना ने
पाकिस्तान की रूह कांपी
जब कारगिल पर तिरंगा फहराया था।

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