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कविता: मुछ पर हंसते हो (चाँदनी साव, बिन्नागुड़ी चाय बगान, पश्चिम बंगाल)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “चाँदनी साव की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मुछ पर हंसते हो”:

 
मुझ पर हंसते हो
याद रख कल
जमाना तुझ पर भी हंसेगा
देख नि: सहाय
यूँ जो तुम
गंदी फब्तियां कसते हो
गली नुक्कड़ पर बैठ
आते जाते जो तुम
अपनी अश्लीलता दर्शाते हो
निगाहों में छुपी
अपनी हैवानियत का
शिकार किसी मासूम को बनाते हो
याद रख कल
जमाना तुझ पर भी हंसेगा।
अपनी बहू बेटियों की आबरू
बहन की राखी
माँ के दूध का कर्ज
एक पत्नी की जिम्मेदारी
निभा न पाये
तो, याद रख कल
जमाना तुझ पर भी हंसेगा।