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कविता: परिवर्तित समय की धारा (डॉ. शीला भार्गव, नागपुर, महाराष्ट्र)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉ. शीला भार्गव की एक कविता  जिसका शीर्षक है “परिवर्तित समय की धारा”:

 
नया सृजन नई दिशा
जब पुकारती अतीत को
प्रात की रविकिरण संवारती
निशीथ को
 
समय का चक्र सदा, एहसास दिलाता रहा
वार्धक्य तरुणाई लिए
बचपन सहलाता रहा
 
कलियुग के काल चक्र में
सतयुग ने गूंज सुनाई
द्वापर ने त्रेता संग
सत्युग को दी बिदाई
 
शिखाओं की बर्फ जब
सागर को धारती
लहर ढूंढें नदिया को
जो बर्फ से पिघलती
 
नया कुछ यहां नहीं है
तारे मुस्कुराते हैं
घूम घूम ब्रम्हांड में
गीत गुनगुनाते हैं।