पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “वीणा गुप्त” की एक कविता जिसका शीर्षक है “अनुरोध कवि से”:
बदरंग हो गया यह, फलक दुनिया का,
अहसास सोए जगाकर, नया विश्वास भर दे।
धर्म के नाम पर, आडंबर पल रहे,
कंसों का वध करने, गिरधर का रूप धर ले।
व्यवहार निरंकुश हुए, आचार में न शिष्टता।
बारूद के पर्वत पर, बैठी है मनुजता।
प्रतिपल प्रलय की आहट,
अश्रुधार बन, नदी का नीर बह रहा,
तू शब्द का कारीगर, अध्याय रच नया।
तू ज्योति का समर्थक, तमस दे मिटा।
जड़ताएंँ फूंकने को, ऊँची मशाल कर ले।
नवरंग पाएगा।
तेरी शब्द-गीता श्रवण कर,
शांति कपोत दम से तेरे, नव उड़ान पाएगा।
मुग्ध चकित रह जाएंँ सब,