पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “प्रिया गौड़” की एक कहानी जिसका शीर्षक है “इज्ज़त ":
कॉलेज की छुट्टियों में इस बार रुचि ने कोई पार्ट टाइम जॉब न करने की सोची और अपने गाँव जाने की तैयारियां करने लगी । रुचि की मम्मी रुचि को फ़ोन पर हमेशा कहती बेटा आ जाओ हमारे साथ कुछ दिन रहो यहां भी पढ़ते लिखते रहना फिर चली जाना जब कॉलेज खुलेगा तो । इस बार नौकरी मत करो मेरे लिए साड़ी की जरूरत नही है और पापा को भी कुर्ता पजामा नही चाहिए न छोटू को किताब कपड़ा चाहिए इस बार तुम आ जाओ बस ...आओगी न तो खूब काम करवाऊंगी तुमसे उधर रुचि मम्मी की काम करवाने की बात सुनकर थोड़ा सा हँस देती थी और कहती थी ठीक बा हो मदर इंडिया अब रो मत आउब ई बार।
रुचि शहर के साथ साथ गाँव को भी अच्छे से समझती और जानती थी। रुचि ने अपना सामान पैक किया और बस में बैठ गयी कुछ घंटों में शहर के चौराहे पर बस रुकी ।
जैसे ही रुचि बस से उतरी उसे उसके ही गाँव का ऑटो ड्राइवर दिख गया जो मुँह में पान भरे कानों में इयरफोन लगाए दो लड़कों के साथ सड़क के किनारे खड़ा हो सवारियों को बुला रहा था और वहां से गुजरने वाली अगल बगल की लड़कियों को देख दाँत चियार रहा था । रुचि का गाँव बहुत छोटा सा था जहाँ हर आदमी एक दूसरे से परिचित होते थे । उसने रुचि को देखा तो वो लाल टॉप और रिप्पड जीन्स पहने खड़ी थी जिसके बाल बीच बीच मे गाढ़े भूरे और लाल रंगों से रंगे( हाइलाइटेड) हुए थे । वो फट से रुचि के पास आया और बोला अरे तू बड़ा दिन के बाद आऊं.. आव बैठा घरे छोड़ देब ई समान छोड़ द हम रख देब तू जा बईठ जा। बाकी सवारियों को छोड़ महेश रुचि की ऐसी सेवा टहल कर रहा था मानो रुचि से उसे कोई काम निकलवाना हो और बार बार हँसते हुए उसे घूरे जा रहा था इधर रुचि उसके इस बर्ताव से असहज हुई जा रही थी और उसे इग्नोर करते हुए अपने फ़ोन में व्यस्त होने का नाटक करने लगी जिससे वो रुचि से जबर्दस्ती बात करने की कोशिश न करें उसके बावजूद पूरे रास्ते महेश उसे आगे के कांच से घूरे ही जा रहा था और सवाल किए जा रहा था जिससे रुचि अधीर हुए जा रही थी कि कब घर पहुँचे । रुचि अपने गाँव के चौराहे पर जैसे पहुँची उसे उसका छोटा भाई सड़क पर बाइक लिए खड़ा हुआ दिखाई दिया । महेश को पैसे देकर वो जैसे आगे बढ़ने लगी वैसे ही महेश बोल उठा कब तक रहबू घरे? पता नही कह कर रुचि आगे बढ़ गयी ।
वो अपने घर के दरवाजे पर पहुँचने ही वाली थी कि एक चाची मिल गयी रुचि ने उन्हें नमस्ते किया रुचि को देखते ही चाची जिस तरह खुन्नस और घृणा से भर गयी थी कुछ कह पाने की स्तिथि में नजर नही आ रही थी इसके बावजूद खुद पर अपना नियंत्रण खोते हुए अपनी ईर्ष्या को जाहिर कर दिया और बोली अरे ई का पहिने हउ तोहर पूरा देह समझ आवत बा ई कपड़ा में और मुँह बनाते हुए अपना बड़ा खुला पेट लेकर वहां से चल दी । रुचि घर मे घुसी और सबसे पहले मम्मी को खूब जोर से गले लगा ली और बोल पड़ी "अब काम करउबु खूब हमसे" मम्मी रोते रोते हँस पड़ी ।
रचना को पता चला कि रुचि आयी है तो वो भागते हुए अपने घर से आ गयी रुचि से मिलने । रचना रुचि की बचपन की सहेली थी दोनों में बचपन मे खूब याराना रहा करता था । रुचि रचना को देखते हु कूद पड़ी और अपनी बाहों में भर लिया । दोनों साथ मे किचन में गयी चाय नाश्ता बनाने लगी ।
नाश्ता लेकर दोनों बाहर आई बैठी और हँस हँस कर बतियाने लगी । रचना की किसी एक बात पर रुचि को खूब तेज हँसी आ गयी और वो जोर जोर से हँसने लगी इस वजह से रचना का चेहरा थोड़ा भय से भर गया और वो चारो तरफ देखने लगी जैसे किसी को खोज रही हो और वो बोली रुचि इतना जोर से मत हँसा हो माई सुन ले त गुस्साए .. रुचि ने कुछ नही कहा और चाय पीने लगी ।
रचना को 15 मिनट से जादा हो गए थे रचना घर मे नही दिखी तो रचना की दादी उसे ढूढ़ते हुए रुचि के घर आ पहुँची जहाँ दादी ने रुचि के साथ रचना को बैठे देखा ।
रुचि शॉर्ट्स और टी शर्ट में बैठी रचना को अपने फ़ोन में अपने सहेलियों और दोस्तों की फोटोज़ दिखा रही थी और अपनी एक फोटो जिसमे उसने पहली बार सिगरेट हाथ मे पकड़ी हुई थी जिसे रचना मुँह पर हाथ रख कर ध्यान से देख रही थी और मुस्कुरा रही थी तभी रचना की दादी चिल्लाते हुए ..तोके समझ नाही आवत घरे में बिना पानी के मरी हम और तू गांव गांव घूम और ग़लत ग़लत सिख सब चल घरे चल , रचना उठती है और रुचि से कल आने
का इशारा करके चली जाती है ।
इधर रचना के घर मे कुछ ही घण्टों में रचना के लिए रचना का अपना कहा जाने वाला घर जेल में तब्दील कर दिया गया । दादी ने दो की चार जोड़ कर सब रचना के बिगड़ने की कहानी बयान कर दी थी फिर रचना से दो साल छोटा उसका छोटा भाई मुँह में गुटखा भरे हुए ही उसने दो झापड़ रचना के गालों पर रसीद कर दिया और बाल पकड़ कर जमीन पर पटक दिया , पिताजी वही बगल में बैठे दाँत पीस रहे थे मार एके हमार नाम बदनाम करे समाज मे नाक कटाए रुचियां से सहूर सिखत बा दुष्ट और बच्चलन लड़की बने। बना बनाया इज्जत हमार खराब करे पर लगी बा । तभी रचना की माँ बाहर से आती है और घर का माहौल देख कर पूछती है क्या हुआ..? दादी खिसिया कर जवाब देती है अरे का भवा का बताई का भवा तुहि ई कुलछनि के पैदा केहे रहे ह ...रुचियां के संघे बईठ के ओकर मोबाइल देखत रहे चलावे सिखत रहे और उ त बेहया बा ही बीड़ी वाला फ़ोटो आपन इके दिखावत रहे और ई खी खी करत रही । ई सब सिखत बा अब इहु के मोबाइल दिवा दे बीड़ी पिए सीखा दे ताकि लईकन संघे घुमे बतियाये और बाप भाई के सामने छोट छोट कपड़ा पहिन के घूमे । अरे एकदम बेहया हो गयी बा काम धंधा घरे के छोड़ के गयी बा बच्छलन से मिले ई नाही की बाप आई बा घामे से छोट भाई आई बा सकूल से त खाना पानी देहि ..हमरे लईका के नाक कटाई दे समाज मे । उधर उसका छोटा भाई गुटखा थूकते हुए रचना को पैर से लतियाए जा रहा था वो बेहोश जमीन पर धूल फांकती हुई पड़ी हुई थी।
दूसरे दिन सुबह रुचि ने
देखा कि रचना जो कुँए से पानी भर रही थी उसकी आँखों और उसके होठों के नीचे
काले निशान पड़े हुए थे मुँह सूजा हुआ और
पानी ले जाते हुए लगड़ा कर चल रही थी । रुचि समझ गयी थी क्या हुआ है और वो रचना से
कुछ न बोल पाई और दुखी मन से उसे बस देखती रही । इस डर से रचना में रुचि को नजर
उठा कर देखा भी नही की कही फिर से एक सभ्य सुशील लड़की कैसे रहती है कैसी होती है
का अध्याय सिखाना न शुरू कर दिया जाए।
रुचि कुछ दिनों में शहर लौट गई और आज अपने कॉलेज गई उधर एक महीने के अंदर ही रचना से दो गुनी उम्र का लड़का देखकर उसकी शादी तय कर दी गयी और घर से लेकर मोहल्ले तक मे खुशियों की शहनाई बजने लगी । रोज दावत और गाना बजाना होने लगा और वही रचना ने अपने बाप की नाक बचा ली और अपने भाई को मेहमानों को पानी पूछने को कह रही थी जो कुछ दिनों पहले उसे लातों से और उसका बाल घसीट घसीट कर पिट रहा था ।
रुचि सोचने लगी क्यों रचना उसके घर क्यों आई .. आखिर क्यों ..?