ऊधम सिंह ने ऊधम मचाया था काकस्टन लंदन हाल में।
जलियां वाले नर संहार का बदला ले लिया था हर हाल में।।
धन्य है मां भारती के सपूत हम सब तुझको शीश नमाते हैं -
याद करेंगा तुझे हर भारत वासी हर दौर में हर काल में।।
स्वतंत्रता के समर में शहीद हो भारती के गीत गाएं थे।।
केसे भुला दे कोई उस जलियां वाले बाग़ नर संहार को-
सैकड़ों निर्दोषों के जनरल डायर ने जहां लहू बहाएं थे।।
धन्य हुई थी मां भारती मां जो ऊधमसिंह की माई थी।।
अपनी आंखो से जिसने निर्दोषों का लहू जो बहते देखा था -
बदले की भावना उस घड़ी भयानक दृश्य ने उपजाई थी।।
जो कसम खाई थी ऊधम ने वहीं प्रण उसका पूरा पक्का था।।
समय बीत रहा था किन्तु ऊधम सिंह ने हार नहीं मानी थी -
इक्कीस साल बाद बदले का एक सभा मै जब मिला मोका था।।
डायर खोया था ख्यालों मै चल रही थी विशेष मीटिंग जहां।।
वेश बदल कर पहुंचा था ऊधम सिंह भारती का लाल वहां -
जयहिंद बोलकर गोली मारी डायर का बना था काल वहां।।
जो नर संहार हुआ जलियां वाले बाग़ मै हुआ नहीं होता।।
एक भी बन्दूक की नली यदि उस वक्त डायर कि तरफ मूड जाती -
सच मानिए मनहर भारत ओर इतना गुलाम हुआ नहीं होता।।