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कविता: साहसी ऊधम सिंह (मनोहर सिंह चौहान मधुकर, रतलाम, मध्यप्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “मनोहर सिंह चौहान मधुकर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “साहसी ऊधम सिंह”:

 
ऊधम सिंह ने ऊधम मचाया था काकस्टन लंदन हाल में।
जलियां वाले नर संहार का बदला ले लिया था हर हाल में।।
धन्य है मां भारती के सपूत हम सब तुझको शीश नमाते हैं -
याद करेंगा तुझे हर भारत वासी हर दौर में हर काल में।।
 
एक से बढ़कर एक साहसी वीर सपूत मां  भारती ने पाए थे।
स्वतंत्रता के समर में शहीद हो भारती के गीत गाएं थे।।
केसे भुला दे कोई उस जलियां वाले बाग़ नर संहार को-
सैकड़ों निर्दोषों के  जनरल डायर ने जहां लहू बहाएं थे।।
 
उस बाग़ की मिट्टी को शीश धर कर सपूत ने कसम खाई थी।
धन्य हुई थी मां भारती मां जो ऊधमसिंह की माई थी।।
अपनी आंखो से जिसने निर्दोषों का लहू जो बहते देखा था -
बदले की भावना उस घड़ी भयानक दृश्य ने उपजाई थी।।
 
अफ्रीका ब्राजील नेरोबी अमरीका हो लंदन पहुंचा था।
जो कसम खाई थी ऊधम ने वहीं प्रण उसका पूरा पक्का था।।
समय बीत रहा था किन्तु ऊधम सिंह ने हार नहीं मानी थी -
इक्कीस साल बाद बदले का एक सभा मै जब मिला मोका था।।
 
उन्नीस सो चालीस रायल एशियन काकस्टन लंदन हाल जहां।
डायर खोया था  ख्यालों मै चल रही थी विशेष मीटिंग जहां।।
वेश बदल कर पहुंचा था ऊधम सिंह भारती का लाल वहां -
जयहिंद बोलकर गोली मारी डायर का बना था काल वहां।।
 
भारतवासी सैनिक काश अंग्रेज़ के हाथ बिका नहीं होता।
जो नर संहार हुआ जलियां वाले बाग़ मै हुआ नहीं  होता।।
एक भी बन्दूक की नली यदि उस वक्त डायर कि तरफ मूड जाती -
सच मानिए मनहर भारत ओर इतना गुलाम हुआ नहीं होता।।