पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉ• बीना "रागी"” की एक कविता जिसका शीर्षक है “अधूरा मिलन”:
ख्वाबों में तुम्हारा आना
और फिर यूं चले जाना
जैसे भोर में सुनहरी किरणों के संग दिनकर का आना
और शाम ढलते चले जाना
मद भरी यामिनी चंदा की
छांव में मुस्कुराती है
सितारों संग अठखेलियां
खेलती इठलाती है
क्या तुझे पता नहीं सुनो वो चांदनी ना इतरा हमें देख
जैसे कलकल बहती हो मंदाकिनी है
जब शाम सवेरा दिन और रात
का मिलन अधूरा है
दीया बिन बाती बिन तेल
कहां पूरा है
कोमल बंधन है तेरे मेरे प्रीत का कैसे समझाऊं मन को
दुनिया की रीत का
लताएं वृक्ष से लिपट कर कहती हैं पृथक ना हो जाए आलिंगन
मन ही मन डरती है
आओ तुम्हें हृदय के कोरे कागज पर पंजीकृत करती हूं
मन ही मन शारीरिक बंधन से ऊपर अंगीकृत करती हू
तनिक रुक जाओ मन के मंदिर में दीप जला लु फिर चले जाना धीमे धीमे तुम्हारी यादों की
आहट की पदचापो का
वीरानी में खो जाना
ख्वाब में तुम्हारा आना
आर यू चले जाना
भोर की सुनहरी किरणों संग दिनकर का आना और
शाम ढलते चले जाना