पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “आंकाक्षा रूपा चचरा” की एक कविता जिसका शीर्षक है “आशीर्वाद”:
किस्मत वालों को कद्र होती है।
आशीर्वाद की
जिंदगी की तेज दौड़ती रफ्तार ने जब संस्कारों की
आहुति दे दी।
रिश्ते बोझ बन थकान लगे।
बच्चे अंग्रेजी स्कूलों मे जाने लगे।
संस्कारों ,संस्कृति को पीछे छोड
पैर छूने को पुराना रिवाज बताने लगे हाय
कैसा नया जमाना आया....
बूढे माँ - बाप वॄद्ध आश्रम जाने लगे।
लहू मे पसीना मिला कर जमा की जो कमाई उस पर
बाप को वृद्धाआश्रम भेजने वाले
हक जमाने लगे।
आशीर्वाद तो बेफजूल लगने लगा आधुनिक युग की
चमकते लोगो को
अब तो पैसा ही सब बन गया
क्या पता था।
आज जो धन छीन कर मदमस्त जीवन बिता रहे थे।
आशीर्वादो के वृक्षों की धनी छाया से वंचित रह कर
इक दिन लाचारी और बेबसी की चादर लपेटना
कितना मुश्किल होगा ।
अरे , ये लोगो की सोच ने सयुंक्त परिवार को बिखेर प्यार भाव के मन को छिन भिन्न कर डाला।
लेकिन सीख ये अनमोल है।
आशीर्वाद की महिमा बडी निराली है।
सकारात्मक दुआओं ने विपदा बहुत सी
टाली है।
बडे है धने वृक्षों की भांति
शुद्ध आचरण का अनुभव उन मे
जीवन का तजुर्बा लेकर
मीठे ज्ञान के अमृत पान कराते है।
सफलता के शिखर का ताज जो आज है।
मेरे सिर पर
ईश्वर रूपी माँ बाप का मिला
अनमोल आशीर्वाद है
अनमोल आशीर्वाद है