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लघुकथा: सच्चा फौजी (तारावती सैनी "नीरज", जयपुर, राजस्थान )


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी
 डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “तारावती सैनी” की एक लघुकथा जिसका शीर्षक है "सच्चा फौजी":
  
रणजीत फौजी की छुट्टियां खत्म हो चुकी थी। वह रात से ही अपने जाने की तैयारी  में लग गया। उसने देखा  उसका बेटा कौशिक हर बार की तरह इस बार रो नहीं रहा है बल्कि  उनके सामान को जमाने में उनकी मदद कर रहा है। रणजीत ने उसे कई बार मना भी किया कि वह कर लेंगे लेकिन वह नहीं माना और अपने पापा की मदद करने में जुटा रहा।

 कुछ देर बाद जब रणजीत से रहा नहीं गया तो उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा _इस बार क्या हुआ कौशिक बड़ी समझदारी से बिना रोए मेरी मदद कर रहा है ।

उनकी पत्नी बोली _कुछ महीने पहले जब विजय भाईसाहब शहीद हुए थे तो उनका बेटा बिल्कुल भी नहीं रोया और उन्हें बड़े गर्व से विदा किया था। यह देख कौशिक ने भी सोचा उसके पापा भी तो फौजी हैं वह भी देश की सेवा करते हैं तो वह भी अब से अपने पापा  के जाने पर नहीं रोएगा ।
रणजीत पत्नी की बात सुनकर थोड़ा सा मुस्करा दिया। 

 जब सुबह रणजीत जाने लगा तो उसके पूरे परिवार के चेहरे पर खुशी भी थी और उदासी  भी थी। लेकिन कौशिक के चेहरे पर उदासी थी ना खुशी थी उसके चेहरे पर  अपने पापा को जाते देखकर सिर्फ गर्व दिख रहा था वह  सीना ताने खड़ा था । रणजीत कौशिक को देखकर अब मन ही मन समझ चुका था कि आज उसका बेटा वाकई बड़ा हो गया है। वह  उसमें एक सच्चा फौजी देख रहे थे । उन्होंने कौशिक को गले से लगा लिया । कौशिक बोला पापा मैं भी आपकी तरह फौजी बनाना चाहता हूं और देश की सेवा करना चाहता हूं। यह सुनकर तो रणजीत का सीना गर्व से  चौड़ा और चेहरा खुशी से खिल उठा।