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कविता: मुझे स्त्री ही रहने दो (ऋतु लिम्बू, लुकसान, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “ऋतु लिम्बू की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मुझे स्त्री ही रहने दो”:
 
स्त्री हुँ मैं, मुझे स्त्री ही रहने दो
यूँ पुरुषों के बराबर मुझे खड़ा करने की
कोशिश भी मत करना
खुद ही सामने आ खड़ा होकर
हमने तुम्हें अपने बराबर जगह दी
यह जताने की कोशिश भी मत करना
नहीं कर पाओगे मेरी बराबरी
न मैं तुम सा होना चाहती हुँ
तुम अपने हिस्से का अधिकार रख लो
मैं बस अपना हक़ छीनना चाहती हुँ
 
छीनना इसलिये चाहती हुँ क्योंकि
मेरे ही अधिकारों पर कुंडली मार
मुझे ही बेचना चाहते हो
अधिकारों को संख्या और
प्रतिशत में बाँट
उसका बंटवारा करना चाहते हो
मैंने अगर 
माँगा तो तुम जताओगे,
खुद ही दिया तो ज़िन्दगी भर
अपना रौब जमाओगे
ऐसी बराबरी से, गैर बराबर होना अच्छा
सुकून से जीना चाहती हुँ
मैं बस अपना हक़ छीनना चाहती हुँ
 
नहीं चाहिए आरक्षण
न ही सीटें चाहिए बस में
चाहिए तो बस सम्मान,
सम्मान मेरी राय का
सम्मान मेरी ना का
सम्मान मेरे होने का।
 
और यह सब एक तरफ़ा नहीं है
मैं फेमीनिस्ट हुँ, सुडो फेमीनिस्ट नहीं
जैसा व्यवहार तुम्हारा होगा, वैसा ही मेरा भी
कभी ऐसी बराबरी करके तो देखो
जैसा मैं चाहती हुँ
 
फिर ज़िन्दगी में बराबरी भी आएगी
और बहार भी
फिर ना तुम्हें पुरुष होने का घमंड होगा
ना मुझे स्त्री होने की कुंठा
चैन की नींद सोना चाहती हुँ
मैं बस अपना हक़ छीनना चाहती हुँ।