पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “शमा जैन सिंघल” की एक लघुकथा जिसका शीर्षक है "गरबा से डांडिया की ओर":
राखी को गरबा में महारत हासिल थी साथ ही उसे गरबा क्वीन के नाम से जाना जाता था! नवरात्र के आते ही उसके मन में उमंग व उत्साह जाग्रित हो जाता ! उसकी तैयारी वह एक महीने पहले ही शुरू कर देती!
इस वर्ष ही उसके बडे़ भैया की शादी हुई थी और उसकी भाभी बहुत आधुनिक थी! नवरात्र का जब पर्व आया तो उसने अपनी भाभी को गरबा में साथ चल मैया रानी की अराधना, आरती करने के लिए कहा,भाभी ने उसे साफ इंकार कर दिया, कहा कि गरबा आउट डेटिङ है अब डी -जे पर आधुनिक लिबास पहन डांडिया करने का चलन है, वही स्टेट्स सिंबल है , उसी से सोसायटी में नाम व पहचान है! मैं तो वहीं जाऊंगी अगर तुम्हे आना हो तो आ जाओ! ऐसा कह वह अपने दोस्तों के साथ चली जाती है,पर बहुत रात होने पर भी वह घर वापस नहीं आती तो घरवालों को चिंता सताने लगती है, ऐसे में किसी से भी मदद मांगना अपनी इज्जत पर अंगुली उठवाने जैसा था! खैर! जैसे -तैसे रात कटी सुबह हुई तो सोचा अब ढूंढने का प्रयास करते हैं! दोस्तों से फोन पर बात कि तो पता चला कि किसी ने धोखे से पेयजल की जगह शराब पीला दी थी ,नशे की हालत में घर कैसे आती इसलिए रात किसी होटल में गुजारनी पड़ी!
ससुराल वालों से जब राखी की भाभी का सामना हुआ तो उसे अपने किए पर पछतावा हुआ , उसने सबसे माफी मांग कर यह विश्वास दिलाया कि वह नवरात्र का पवित्र त्योहार दिखावे से नहीं वरन् सादगी , आस्था से परिवार जन के साथ मनाएंगी!
उसकी बदली हुई सोच से सभी बहुत खुश हुए और इसे एक बुरा हादसा समझ भुला दिया !