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कविता: आज तोड़ा है उसने मौऩ़ (डॉ• राजेश सिंह राठौर, कल्याणपुर, कानपुर, उत्तर प्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉराजेश सिंह राठौर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “आज तोड़ा है उसने मौऩ़”:

 
सैकड़ों बार उसे मैंने
मारा / दुतकारा-
कदम- कदम पर उसे
अपमानित किया ,
बचपन से आज तक
उसके शरीर से चुराई
श्रम की बूँदें
जिन्हे मैं भोगता रहा !
 
रोता रहा उसके
अन्दर का आदमी
लेकिन इसेअपनी
नियति समझ
वह सब सहता रहा !
 
लेकिन आज
उसके अन्दर का आदमी
जागा है,
वह सोचने लगा है कि
इतना अपमान उसने
क्यों भोगा है !
 
उसका कसूर सिर्फ इतना है
कि वह दलित परिवार में जन्मा है,
तो क्या दलित इन्सान नही होते ?
 
वह सोचता है कि
उसके भीतर भी बहता है
वही रक्त / वही रक्त कणिकायें ,
धड़कता है ह्रदय
फेफड़ों से आती जाती
वही हवायें !
 
फिर जन्म लेने मात्र से
वह कैसे हो गया नींच ,
अपने अपमानित होने पर
क्रोधित भी नही होता
सब सहता है जबड़े भींच !
 
उसे क्रोध नहीं आता ?
पीड़ा का अहसास नही होता ?
इसीलिये प्रतिरोध नही करता ,
लेकिन ऐसा नही है
उसकी हर इन्द्रिय सक्रिय है,
समाज और परिवार की
परम्पराओं से बँधा है
इसीलिये वह निष्क्रिय है !
 
वह डरता है ब्राह्मणवाद के
सशक्त अलम्बरदारों से,
समाज के नीति नियामकों
और सुरच्छा पहरेदारों से !
 
इसीलिये वह सहता है
सब कुछ खामोश,
दुश्मन के हर हमले पर
खो देता है होश !
.................................
पर आज सब कुछ
नही है यथावत,
हाहाकार मचा है जैसे
आ गयी हो कयामत  !
क्योंकि आज उसने
अपना मौन तोड़ा है,
सदियों से सहता रहा
जो यन्त्रणा/ आज
उसने धैर्य छोड़ा है !
 
घोर यन्त्रणा के चलते
उसकी जर्जर काया
जो कंकाल सी दिखती है,
उसकी रगो में संचरित है
नयी स्फूर्ति,
चेहरे पर दामिनी चमकती है !
 
आज जागा है
उसका स्वाभिमान,
उसने तोड़ डाला है
मेरा अभिमान !
 
मैं खड़ा हुँ स्तब्ध
जैसे मेरे विशाल साम्राज्य की
चूले हिल गयी हैं ,
उसके एक थप्पड़ के साथ
मेरी सत्ता के खिलाफ जैसे
बगावत की बिगुल बज गयी है !
......................................
लेकिन मैं जानता हूँ
वह कुछ नही कर सकता !
मेरे अभेद्ध अस्त्रो के सामने
वह एक पल नही ठहर सकता !
 
क्योंकि ब्राह्मणवादी सत्ता की जड़ें
जमीन में बहुत गहरे धँसी हैं,
उनकी सियासत की शतरंज की गोंटे
जंमी से आसमाँ तक बसी हैं !