पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “राज भट्टराई” की एक कविता जिसका शीर्षक है “!!क्या का घमंड करते हों?!!”:
क्या का घमंड करते हों ?
वो शिक्षा,जो किसी काम की नहीं है
इसलिए तो आज तक चाय बगानों में हमारे मां,बाप,भाई,बहनों को न्याय नहीं मिला!
जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं
में निशब्द हूं आज !
तुम्हारे अपंग और फेसबुक में जोक्स मात्र के सेयर देखकर
तुम सभी को पठमूख की संज्ञा दूं तो कैसा रहेगा?
मुझसे अधिक छमता,योग्यता तुम सब के पास हैं
पर क्या उखाड़ लिया तुम सब ने?
एक आवाज तक तो निकालता नहीं तुम्हारे मुंह से
क्या का घमंड करते हों?
शिक्षित हों तो परिचय दो अपने शिक्षित होने का
मन दुखता नहीं तुम सबका चाय बगानों की हिदय विचलित अवस्था देखकर?
या फिर अपना अस्तित्व भुला चुके हों तुम सब?
दो परिचय अपने शिक्षित होने का
मात्र घमंड मत पालो अपनें शिक्षित होने का
वास्तविक धरातल पर संघर्ष कर
दें परिचय अपने शिक्षित, सभ्य समाज का अभिन्न अंग होने का
एकता के सूत्र में बांधकर सभी को
शिक्षा से रणनीति तैयार करों चाय बगानों की कुशलता के लिए
दिखाओ एकता, बनाओं शिक्षा को हथियार
तैयार करों बड़ी आन्दोलन की रुपरेखा
तब होगा पहला कदम तुम्हारा अपनी अस्तित्व की रक्षा के लिए
क्या का घमंड करते हों ?
जिस पर दीमक लग कहीं ख़राब न हों जाए
तुम्हारे अहंकार,घमंड के चक्कर में चाय बगानों का अस्तित्व ख़तरे में है।
हमारे अपने चाय श्रमिकों को न्याय दिलाने के लिए
समय की मांग चाय बगानों को
सभ्य शिक्षित भाई बहनों की नेतृत्व की
राजनैतिक पार्टियों ने बहुत किया हम-सब से झुठ और छल
चाय बागानों को छेद रहीं हैं। राजनैतिक इच्छा
स्वाथ सिंधी का मात्र केन्द्र रह गया है चाय बगान
अब उस छेद को बन्द करने का वक्त आ गया है
छेद बन्द करना है या इनकी दासपन को स्वीकार करना है
घमंड ना कर अपनी उच्च शिक्षा पर
शिक्षा को न्याय रुपि रणनीति का हथियार बना
तब परिचय सही मायने में होगा तुम्हारा सभ्य शिक्षित होने का