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कविता: !!क्या का घमंड करते हों?!! (राज भट्टराई, गुल्मा चाय बगान, दार्जिलिंग)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “राज भट्टराई की एक कविता  जिसका शीर्षक है “!!क्या का घमंड करते हों?!!”: 

क्या का घमंड करते हों ?
अपनी उच्च शिक्षा का
वो शिक्षा,जो किसी काम की नहीं है
इसलिए तो आज तक चाय बगानों में हमारे मां,बाप,भाई,बहनों को न्याय नहीं मिला!
 
शौकेश में सजाओं तुम्हारी उस उच्च शिक्षा को
जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं
में निशब्द हूं आज !
तुम्हारे अपंग और फेसबुक में जोक्स मात्र के सेयर देखकर
तुम सभी को पठमूख की संज्ञा दूं तो कैसा रहेगा?
 
क्योंकि मैं मात्र १०वी पास हूं!
मुझसे अधिक छमता,योग्यता तुम सब के पास हैं
पर क्या उखाड़ लिया तुम सब ने?
उच्च शिक्षा हासिल कर!
एक आवाज तक तो निकालता नहीं तुम्हारे मुंह से
 
हमारे दयानीय चाय बगानों की स्थिति देख कर
क्या का घमंड करते हों?
अपनी उच्च शिक्षा का!
शिक्षित हों तो परिचय दो अपने शिक्षित होने का
मन दुखता नहीं तुम सबका चाय बगानों की हिदय विचलित अवस्था देखकर?
 
की निर्जिव हों चुके हों तुम सब?
प्राण होता तो अस्तित्व में आने की कोशिश तो करतें
या फिर अपना अस्तित्व भुला चुके हों तुम सब?
जड़ गढ़ा है हमारा चाय बगानों में!
 
दो हाथ जोड़कर भिक, विनती मांग रहा हुं तुम सब से
दो परिचय अपने शिक्षित होने का
मात्र घमंड मत पालो अपनें शिक्षित होने का
वास्तविक धरातल पर संघर्ष कर
दें परिचय अपने शिक्षित, सभ्य समाज का अभिन्न अंग होने का
 
तुम सब नहीं हो पठमूख यदि
एकता के सूत्र में बांधकर सभी को
शिक्षा से रणनीति तैयार करों चाय बगानों की कुशलता के लिए
दिखाओ एकता, बनाओं शिक्षा को हथियार
 
हमारी जड़ें हिलाने वाले के विरुद्ध
तैयार करों बड़ी आन्दोलन की रुपरेखा
तब होगा पहला कदम तुम्हारा अपनी अस्तित्व की रक्षा के लिए
क्या का घमंड करते हों ?
अपनी उच्च शिक्षा का
 
क्या भुल गए अपने मां के शरीर से खुन की तरह बह रहें पसीने के धार का मोल?
क्या भुल गए अपने बाप का चाय बगानों में त्याग, संघर्ष का मोल?
क्या अपनें मां-बाप के दस ऊंगली को गलाकर कमाये पैसे पर शिक्षित होने का अहंकार, घमंड मात्र पालोगे ?
 
चाय श्रमिकों को न्याय मिलें उसके लिए कदम नहीं उठाएंगे?
क्या का घमंड करते हों ?
अपनी उच्च शिक्षा का
जिस पर दीमक लग कहीं ख़राब न हों जाए
तुम्हारे अहंकार,घमंड के चक्कर में चाय बगानों का अस्तित्व ख़तरे में है।
 
समय रहते अपना अमूल्य योगदान दे
हमारे अपने चाय श्रमिकों को न्याय दिलाने के लिए
समय की मांग चाय बगानों को
सभ्य शिक्षित भाई बहनों की नेतृत्व की
राजनैतिक पार्टियों ने बहुत किया हम-सब से झुठ और छल
 
शिक्षित जमात एक होकर दिखा दें अपना शिक्षा का बल
चाय बागानों को छेद रहीं हैं। राजनैतिक इच्छा
स्वाथ सिंधी का मात्र केन्द्र रह गया है चाय बगान
अब उस छेद को बन्द करने का वक्त आ गया है
छेद बन्द करना है या इनकी दासपन को स्वीकार करना है
 
यह तय मेरे शिक्षित जमात को करना है
घमंड ना कर अपनी उच्च शिक्षा पर
शिक्षा को न्याय रुपि रणनीति का हथियार बना
तब परिचय सही मायने में होगा तुम्हारा सभ्य शिक्षित होने का
 
जय आदिवासी, जय गोखा, जय चायबगान वासी