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लघुकथा: पांच रुपया (तारावती सैनी "नीरज", जयपुर, राजस्थान )


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी
 डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “तारावती सैनी” की एक लघुकथा जिसका शीर्षक है "पांच रुपया
":
  
प्रतीक के पापा जब से आए थे तब से ही वह उनके पीछे  पांच रुपए देने की  मांग कर रहा था । लेकिन उसके पापा आते ही अपने किसी बहुत जरूर कार्य में व्यस्त हो गए और उन्होंने प्रतीक की बात   पर काफी देर तक ध्यान नहीं दिया। आखिरकार जब प्रतीक ने बहुत ज्यादा जिद की तो उन्होंने अपने पेपर पटकते हुए  कहा_   क्या हुआ प्रतीक मैं कोई बहुत जरूरी काम कर रहा हूं और तूने ये क्या रट लगा रखी है । तुझे पाँच रुपए क्यों चाहिए।
 
प्रतीक ने धीमी आवाज में कहापापा वह सामने जो चार पांच बच्चे हैं मैं उन्हें आज ढावे पर खाना खिलाना चाहता हूं। मेरे पास पांच रुपया नही थे इसलिए आपसे बार बार कह रहा था।
मां कहती थी न हमें गरीबों को खाना खिलाना चाहिए  उनकी मदद करनी चाहिए ।
पर तुम उन चार पांच बच्चों को पांच रुपए में खाना कैसे खिलाओगे ।
 
पापा वो मेरे पास  नाइटी फाइव रुपए तो हैं  मुझे बस पांच रुपए और चाहिए थे ढावे वाले अंकल कह रहे थे वह बीस रुपए में एक आदमी को भरपेट खाना देते हैं।
 
यह बात सुनते ही प्रतीक के पापा को अपने बेटे की इस उम्दा सोच पर गर्व हुआ और उन्हें इस बात की भी खुशी हुई की उसने अपनी पॉकेट मनी को इस  काम के लिए बचाया । आज इसकी मां होती तो कितना खुश होती। 
 
उन्होंने जल्दी से अपने जेब में हाथ दिया और पानसो का नोट देकर कहा _ ये लो बेटा तुम्हारे  जितने भी और दोस्त हों उनको भी खाना खिला देना।
 
प्रतीक  आई लव यू पापा कहते हुए वो नोट लेकर खुशी में हवा की गति से गायब हो गया और उसके पापा के होंठो पर अपने लाडले की सोच को देखते हुए  खुशी फैली हुई थी।