पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी
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सामने प्रस्तुत है रचनाकार “तारावती
सैनी” की एकलघुकथाजिसका
शीर्षक है "पांच रुपया": प्रतीक के पापा जब से आए थे तब से ही वह उनके पीछेपांच
रुपए देने कीमांग कर रहा था । लेकिन उसके पापा आते ही
अपने किसी बहुत जरूर कार्य में व्यस्त हो गए और उन्होंने प्रतीक की बातपर काफी देर तक ध्यान नहीं दिया। आखिरकार जब प्रतीक ने बहुत ज्यादा जिद की तो
उन्होंने अपने पेपर पटकते हुएकहा_ क्या
हुआ प्रतीक मैं कोई बहुत जरूरी काम कर रहा हूं और तूने ये क्या रट लगा रखी है ।
तुझे पाँच रुपए क्यों चाहिए। प्रतीक ने धीमी आवाज में कहा_ पापा वह सामने जो चार पांच बच्चे हैं मैं
उन्हें आज ढावे पर खाना खिलाना चाहता हूं। मेरे पास पांच रुपया नही थे इसलिए आपसे
बार बार कह रहा था। मां कहती थी न हमें गरीबों को खाना खिलाना चाहिएउनकी
मदद करनी चाहिए । पर तुम उन चार पांच बच्चों को पांच रुपए में खाना कैसे खिलाओगे । पापा वो मेरे पासनाइटी फाइव रुपए तो हैंमुझे बस
पांच रुपए और चाहिए थे ढावे वाले अंकल कह रहे थे वह बीस रुपए में एक आदमी को भरपेट
खाना देते हैं। यह बात सुनते ही प्रतीक के पापा को अपने बेटे की इस उम्दा सोच पर गर्व हुआ और
उन्हें इस बात की भी खुशी हुई की उसने अपनी पॉकेट मनी को इसकाम के
लिए बचाया । आज इसकी मां होती तो कितना खुश होती। उन्होंने जल्दी से अपने जेब में हाथ दिया और पानसो का नोट देकर कहा _ ये लो
बेटा तुम्हारेजितने भी और दोस्त हों उनको भी खाना खिला
देना। प्रतीकआई लव यू पापा कहते हुए वो नोट लेकर खुशी
में हवा की गति से गायब हो गया और उसके पापा के होंठो पर अपने लाडले की सोच को
देखते हुएखुशी फैली हुई थी।
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