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कविता: बदलते अर्थ... (डॉ• राजेश सिंह राठौर, कल्याणपुर, कानपुर, उत्तर प्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉराजेश सिंह राठौर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बदलते अर्थ...”:

बैठकर नीम की छॉव में
डाकिये का इन्तजार अब नही होता,
इसीलिये अब कोई गीत
प्यार के भावों से सराबोर नही होता !
 
कहॉ वह ह्रदय के उदगार
स्नेह सने शब्दों के भंण्डार !
 
कागज पर प्रिय के स्पर्श का अहसास,
मन की सारी वेदना उड़ेल देने का प्रयास !
 
अब हाय हलो टाटा में
सिमट गया है सब कुछ ,
शब्दों के इस फेर जाल में
बदल गया है सब कुछ  !
 
डाकिये की राह में टिकी आँखें ,
साइकिल की घंटी से खिली बॉछें !
 
चिट्ठियों का बंडल लिये डाकिये का आना
देख कर उसका चेहरा सब कुछ भॉप जाना
कि आया है प्रिय का सन्देश
जो बैठा है जा कर दूर देश  !
 
चिट्ठियों को सँजो कर रखना,
फुर्सत के लम्हों में बार बार पढ़ना !
 
अब टेलीफोन की घंटी बजती है
जो मन में सिहरन भरती है !
न कोई समय न कोई इंतजार
बजती है दिन में कई कई बार !
 
हलो कैसी हो