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कविता: देश की माटी (सरस्वती उनियाल, विकास नगर, देहरादून, उत्तराखंड)


 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सरस्वती उनियाल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “देश की माटी":

देश की माटी हमें जान से प्यारी है,

इस पर अपनी सारी खुशियाँ बलिहारी हैं।

वीर सपूत आजादी दे अमर हो गए,

हंसते-हंसते मातृभूमि पर न्योछावर हो गए।

इसकी रक्षा आज हमारी जिम्मेदारी है,

देश की माटी हमें जान से प्यारी है।

 

हे भारत मां,रगों में बहता लहू तेरी आन-बान-शान है,

तेरे शौर्य का द्योतक वो प्रहरी जवान है,

जो निकलता है देश रक्षा को शीश कफन बांध कर,

खाता है सौगंध पावन माटी को चूम कर,

मिटा दूंगा नामोनिशान दुश्मन का,

या फिर लौटूंगा तिरंगे में लिपट कर।

हे हिंद,शहीदों ने शीश चढ़ा तेरी आरती उतारी है ।

देश की माटी हमें जान से प्यारी है।

 

हे भारत मां,तेरी बेटियां भी तो महान हैं।

देश पर पिता,भाई,पति,बेटा करती कुर्बान हैं।

वो तेरे बेटे हैं,जो लहू से चमन सजाते हैं।

वो तेरी बेटियां हैं जो सूनी मांग मुस्काती हैं।

देश पर सर्वस्व लूटा वीर नारी कहलाती हैं ।

वो कभी राधा,मीरा,तो कभी शत्रु पर प्रहार कटारी हैं,

इनका चंडी रूप देख अरि ने भी हिम्मत हारी है।

देश की माटी हमें जान से प्यारी है

 

हे भारत मां तेरे सपूत,

डरते नहीं हैंफांसी के फन्दों से,

खतरा है तो बस घर के जयचंदो से,

शत्रु हमको आंख दिखाए ,येउसकी औकात नहीं,

आस्तीनों  में सांप छिपे हैं,बाकी कोई बात नहीं।

राष्ट्रप्रेम है सबसे ऊपर,करनी हमें वफादारी है।

आओ मिल संकल्प करें,निभानी हमें जिम्मेदारी है।

देश की माटी हमें जान से प्यारी है।

इस पर अपनी सांसे बलिहारी है।