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लघुकथा: शब्दाघात (डॉ. त्रिलोकी सिंह, हिन्दूपुर, करछना, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ. त्रिलोकी सिंह की एक लघुकथा  जिसका शीर्षक है “शब्दाघात":

 "बधाई हो, बेटा हुआ है।"- ऑपरेशन रूम से बाहर आकर नर्स ने जब यह खुशखबरी दी तो सहसा श्रीकांत को विश्वास ही नहीं हुआ , क्योंकि विगत तीन वर्ष पूर्व भी उन्हें इसी प्रकार की खुशखबरी सुनने को मिली थी , पर थोड़ी ही देर बाद दूसरी बेटी के आगमन की सही सूचना ने उनके मस्तिष्क पर चिंता की रेखाएं उभार दी थी। उसी अनहोनी की पुनरावृत्ति के भय से श्रीकांत ने स्पष्ट कराना आवश्यक समझा। उन्होंने आशंका भरे स्वर में नर्स से कहा," बेटा ही हुआ है न!" तभी अधखुले दरवाजे के अंदर से जूनियर डॉक्टर ने भी बेटे के जन्म की पुष्टि की। अब उनका चेहरा प्रसन्नता से चमक उठा। आखिर यही इकलौता बेटा तो उनके बुढ़ापे में उनका सहारा बनेगा ; उनकी देखभाल करेगा। इसी बेटे के लिए तो उन्होंने मत्था टेकने से कोई मंदिर न छोड़ा, देवी - देवताओं की मनौतियाँ मानी और फकीरों से दुआ- ताबीज ली।

        श्रीकांत ने बेटे - बेटियों को पढ़ाया-लिखाया और समय आने पर बड़ी धूमधाम से दोनों बेटियों की शादी कर दी। तत्पश्चात बेटे के लिए सर्वगुणसंपन्न बहू की खोज करने लगे परंतु गुण और सौंदर्य का एक साथ मिलना सर्वथा असंभव नहीं तो दुर्लभ अवश्य है। फिलहाल उन्होंने सामंजस्य स्थापित करते हुए बेटे का भी विवाह कर दिया।
        श्रीकांत अपने जीवन के अड़सठ बसंत देख चुके थे । बेटे और बहू के खर्च को देखते हुए उनकी मासिक पेंशन की धनराशि पर्याप्त नहीं थी। उनका स्वास्थ्य भी दिनोंदिन गिरता जा रहा था तथा अपने से उठने - बैठने की ताकत कम हो गई थी। बाप- बेटे के बीच बात कम, विवाद अधिक होता।बहू-बेटे की बातें उनके हृदय को आहत कर देतीं; आँखें आँसुओं से भर जातीं; भूख गायब हो जाती और जिह्वा से स्वर न फूटते क्योंकि जिस बेटे से उन्होंने बड़ी-बड़ी उम्मीदें की थीं, उसके शब्दाघात से वे एकदम टूट गए थे। मानो जीते- जी ही उनके जीवन की ज्योति बुझ गई हो।