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कविता: मजदूर क्यों हो गया है मजबूर (गुड़िया कुमारी, पुर्णिया, बिहार)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार गुड़िया कुमारी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मजदूर क्यों हो गया है मजबूर":

माँ एक सवाल का तुम जवाब दोगी?

माँ... मजदूर क्यों हो गया है इतना मजबूर?

टीवी में क्यों रोता हैं पैदल चलता मजदूर?

माँ हम क्यों है मौन, वो क्यों हैं लाचार?

माँ तुम बोलती कुछ भी क्यों नहीं?

क्या नहीं चाहिए करना सरकार को कोई विचार?

क्यों नहीं सरकार गरीबों की सहायता करने को होते हैं विवश?

क्यों करते रहते हैं गरीबों को इतना बेबस?

माँ हम सरकार को कुछ बोलते क्यों नहीं है?

माँ अपना मुँह हम खोलते क्यों नहीं है?

मिलों दूर चलते-चलते पैरों में पड़े हैं हैं छाले,

सुबह से क्या खाया होगा मुँह में नहीं लिए एक भी निवाले?

माँ अमीर क्यों होते है इतना बेरहम?

क्यों नहीं करता गरीबों पर रहम?