पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राघवेंद्र सिंह की एक कविता जिसका शीर्षक है तीन रंग से बना "तिरंगा":
भारत की पहचान को
देखो तीन रंग ने अमर किया,
तीन रंग बन गये
पुष्प और बीच में चक्र ने भ्रमर किया।
इन तीन रंग की
गहराई का मैं ऐसे आज बखान करूँ,
बन गये तिरंगा
तीन रंग इन तीनों का सम्मान करूँ।।।।।।
केसरिया रंग ऐसा
लगता जैसे उगते सूरज की लाली हो,
बलिदान हेतु
समर्पित जैसे किसी सुंदर उपवन का माली हो।
है श्वेत् रंग
ऐसा लगता जैसे मेघों का हुआ मिलन,
बन गया शांति का
शान्तिदूत न ईर्ष्या हुई न हुई जलन।।।।।
रंग हरा लगा ऐसा
जैसे खेतों में सुंदर फसल लगी,
बन गया प्रतीक
हरियाली का प्रकृति में इसकी झलक दिखी।
चक्र का भी अपना
है महत्व जो इनके बीच में मिलता है,
नीले रंग सा है
नीलगगन जो जीवन की गतिशीलता है।।।।।
हैं चौबीस इसमें
तीलियाँ जो २४ धर्म बखान करें,
है सच्चा
हिंदुस्तानी वो न्यौछावर इस पर जान करें।
पिंगली वेंकैया
ने इसमें तीनो रंगों को समा दिया,
हो गया अमर वह
महापुरुष जिसने यह तिरंगा बना दिया।।।।।
इन तीनों रंगों
ने मिलकर के भारत की पहचान बनाई है,
इन तीन रंग
सम्मान हेतु वीरों ने जान गँवाई है।
तीन ही अक्षर
भारत में है और तीन रंग ही तिरंगा है,
हो रहा मिलन ऐसा
जैसे मिलती यमुना ,सरस्वती और गंगा है।
लिखकर के इनकी
महिमा का बस इतना ही मैं बखान करूँ,
सदा अमर ये रहें रंग और मैं इनका ही सम्मान करूँ।।।।।