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कहानी: एक ख़त अधूरे इश्क के नाम (पल्लवी जोशी, बोधगया, बिहार)



पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पल्लवी जोशी की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “एक ख़त अधूरे इश्क के नाम":

Dear Love,

       कुछ चार साल के सफर रहे होगे हम दोनों का पर ऐसा लगता है जैसे सदियों का वास्ता था मेरा तुमसे। तुम्हारे साथ जिंदगी में बहुत खुशी मिली , बहुत ज्यादा ख़ुश रहती थी मानो तुम्हारे साथ कोई अलग दुनिया में ,वो दुनिया जहा किसी भी चीज की कमी नहीं और ना कोई डर जंहा तुम्हारा और मेरा ख्वाबों का आशियां था।कोई अगर पूछ बैठे हमसे की सबसे कीमती और हसीन पल कब थे तुम्हारे जिंदगी कि किताब तो मेरा जवाब होगा तुम्हारे साथ बिताया एक एक लम्हा।  प्यार तो इतना हो गया था कि तुम्हारे बिना जिंदगी कभी सोची नहीं थी लेकिन देखो आज तुम्हारे बैगर ही जी रहे है ,ख़ुश तो नहीं हूं पर हां जिंदगी कट रही है।

        तो चलो आज शुरू से शुरुआत करते है जब हमारी तुम्हारी मुलाक़ात हुई थी उसी के बारे में बात करते है,,,,

         वैसे तो हमारी मुलाक़ात रोज कॉलेज ने होती थी, पर कभी नजर उठा कर तुम्हें ना मैं देखती और ना तुम।ना कभी बात करने की हिम्मत तुम्हारी होती थी, और ना मै कभी कोशिश भी की।दूर दूर तक दोनों एक ही कॉलेज के एक ही क्लास में अनजान थे।

         फिर तुम्हारे एक fb पोस्ट पे कुछ टिपन्नी कर दी थी  और याद  है तुम मुझे  request भजे थे fb पे मै भी फटाक से एक्सेप्ट कर ली थी,तब महीना जुलाई तारिक 24 था, तब कहा जानती थी इतने करीब हो जाएगा हमलोग ,खैर अब नहीं हैं।

        आगे की बात करते है- फिर हमारी बाते घंटो घंटो होने लगी उस वक़्त तक हम दोस्त ही थे, और बात करने के चक्कर में अपना पढ़ाई लिखाई सब भूल गई  थी मै। ओर अब तुम मुझे भूल गए खैर,,,,

        मेरी बातें उस समय बहुत अच्छी लगती थी तभी तो तुम मुझे अपना बनाने की बात कह मुझे प्रपोज कर दिए मै कुछ वक़्त मांगी थी तुमसे लाजमी था तुम्हें अच्छे से जानती नहीं थी लेकिन मै  ये नहीं जानती थी कि उस वक़्त तक मुझे तुम्हारी आदत हो जाएगी।

        कुछ वक़्त के बाद मै भी तुम्हें हां कह के साई भगवान को साक्षी मान तुम्हे  हर जनम में अपना बानाने को तैयार हो गई थी।।।।

        फिर हमारी बाते  दिन रात करके खत्म ही होने का नाम नहीं ले रहे थे बिना लड़ाई झगडे के चलते रहे फिर मैंने ही तुमसे मिलने की बात कही थी उस वक़्त तुम शिरडी में थे याद होगा तुम्हें, तुम भी बोले थे ठीक है मिलूंगा और बस मै तुम्हारे आने का इंतज़ार करती रही। और जिंदगी नई नई तरंगे बुनने को तैयार थी ,शायद उस वक़्त उतना प्यार नहीं था जितना कि अब है और उम्र भर रहेगा चाहे तुम साथ रहो या नहीं या फिर तुम हमे प्यार करो या नहीं ।

        फिर वो वक़्त भी आया जब हमारे मिलने की समय तय थी उस वक़्त कॉलेज भी बंद था तो कोई बाहाना नहीं था तो बैंक में पैसा जमा करने के बहाना लिए घर से निकल गई पूरे रास्ता यही सोचते जा रही थी कि कैसे तुम्हारे बगल में बैठना होगा और तुम्हारे हाथो को कैसे पकड़ूंगी।और उस से बड़ी बात था की  तुम्हरा सामना कैसे करूंगी मै??? फिर मै बैंक पहुंची और कुछ देर में तुम मेरे सामने मुझे आज भी तुम्हरा वो पहला दीदार याद है कुछ पसीने के सिकंन थे तुम्हारे सिर पे और तुम हर बार की तरह अंगूठा से पसीने को सरका रहे थे गर्मी बर्दास्त  नहीं थी तुम्हें, बताए थे। तुम फिर भी बैंक की गर्मी भरे कमरे में मेरे साथ थे- साथ मतलब मै पैसा जमा करने को कतार में थी और तुम वहीं कुछ दूर कुर्शी पे बैठे । मेरी नजर तुम्हें देख रही थी और तुम्हारी नजर मुझे। फिर कुछ देर में  मेरी एक दोस्त को जरा सा खांसने पे एक बोतल पानी लाकर दिए, तुम तेजी से दिल में कूद गए थे मेरे ,जी चाहता था उस वक़्त को कैद कर के रखू मै अपने भीतर के मन में, और आज भी समेट रखी हूं उस वक़्त की हमारे मुलाक़ात को।तुम फॉर्मल कपड़े में शर्ट पैंट और जूते में बेहद जच रहे थे गोरे तो थे ही तो तेरे पसीने चमक रहे थे फिर बैंक में काम ख़तम कर तुम्हारे साथ बाहर आयी मै ओर अपनी चेहरे को दुपट्टा से ढक कुछ दूर चलकर ऑटो लेके तुम्हारे एकदम बगल में बैठ गई थी शायद याद होगा तुम्हें। तुम भी कश्मकश में मै भी कश्कमस में, चुकी दोनों का पहली दफा था इश्क,  तुम साथ मै बैठे थे पर मुझे बिना मेरी इजाजत के छूना नहीं चाह रहे थे और हुआ यही की तुम मुझे छुए भी नहीं बहुत अच्छा लगा था मुझे तुम्हारा ये अंदाज, बिल्कुल मर मिटी थी। तुम शुरू से अंत तक ऐसे ही रहे बिना मेरे इजाज़त मुझे हाथ भी नहीं लगाते यही सब अंदाज था तुम्हारा जो मेरे दिल में हमेशा की तरह उतर गए  तुम।।। फिर धीरे से बिना अपने हाथ मेरे हाथ में छुयाए तुम मुझे शिरडी के दो इयररिंग मेरे हाथो में पैक डब्बा में थमा गए और मैं भी तुम्हें गणेश भगवान का रिंग तुम्हें दी ताकि हमारे रिश्ते की शुरुआत भगवान को अपने पास रख के करूंगी तो कभी नहीं टूटेगा लेकिन ये भगवान को कहा मंजूर था।

        फिर जब हम गंतव्य स्थान पे पहुंचे तो  मुझे नहीं उतरना था हालांकि तुम्हे भी नहीं उतरना था तो ना बोले तुम ओर ना बोली मै, और उतर कर कुछ कदम बढ़ी और तुम वैसे ही ऑटो पे बैठे हमें देखते रहे। लेकिन मेरा मन कहा भरा था सो तुम्हे आगे जाते ही तुम्हें कॉल कर बुला ली और कह दी की मुझे तुम्हारे साथ रहना है तो तुम मेरी बात मानकर फौरन बोले आ जाओ  मै फिर तुम्हरे साथ थी ,,,

        ये थी ये थी हमारी पहली मुलाकात जो आज भी मेरे जहन में जिंदा है बहुत समेट के रखी हूं इसे।।

        फिर हमारी मुलाक़ते बढ़ती गई अकेले ज्यादा दूर नहीं जाती थी बस एक ऑटो में बैठ के कहीं थोड़े दूर और उसी में बैठ के वापस बस इतना ही मुलाकाते होती थी। लेकिन तुम मुझे छूने का हिम्मत नहीं जुटा पाए थे और मै ही शुरुआत की थी तुम्हारे हाथ थामने की ओर फिर तुम्हरा हाथ थाम पूरा सफर काट लेती थी बस तुम्हरा हाथ में बहुत शक्ति थी मेरे डर ख़तम कर देती थी और तुम्हरे साथ खुश थी मै बहुत जायदा ओर तुम्हारे बहुत करीब आ गई थी, मै बहुत बारीक से उन मुलाकातों को भी सहेज रखी हूं । सोची थी शायद इतने करीब आके हम कभी अलग नहीं हो पाएंगे लेकिन गलत थी मै भला कहा तुम थम के रहने वाले थे मेरे पास पुरानी जो हो गई थी मै अब बचा ही क्या था मुझमें।

        वैलेंटाइन डे  याद है मुझे एक फूल नहीं मिला था तुम्हें हेहेहे याद है ना कैसे तुम्हे चिढाती थीं हमे फूल चाहिए ओर तुम गए थे मेरे लिए फूल लेने लेकिन मिला नहीं, तो किसी घर से कोई लाल फूल तोड़  लाए थे आज भी स्माभल रखी हूं उसको, फिर  टेडी हेहिहे मै बड़ा सा टेडी ले तुम्हें दी थी थोड़ा गुस्सा गए थे कि कया करूंगा टेडी का, लड़की की चीज है ये और बदला लेने के लिए मुझे ओर बड़ा वाला टेडी दिए थे अभी भी है मेरे पास।

        फिर तुम मुझे एक रिंग दिए थे और बोले थे इस से तुम मेरी हमेशा के लिए हो गई हो  तब वो एक रिंग मेरे हाथो में नहीं आती थी थोडी बड़ी थी वो फिर तुमने एक ओर पहना दिया था और बोले थे देखो अब तो बिल्कुल नहीं अलग होगी मेरी दो दो रिंग तुम्हें बांधेगी ओर मै भी यही में के आज तक पहनी हूं उसे ओर शायद खोलूंगी भी नहीं कभी उसे पहने पे आज भी लगता है कि तुम मेरे साथ मेरे बगल में हो । और भी बहुत बाते लिखना बाकी है, नहीं समेट पाऊंगी तुम्हारे प्यार को अपने लफ्जो में। इन चार सालों में बहुत करीब हो गई थी मै बहुत ज्यादा शायद इतना की अब तुम्हें बिना सोचे एक सास भी नहीं चलती है।मेरा एक हिस्सा तुझमें विलीन हो चुकी है जो मेरे हिस्से कभी ना आई।

        देखो तुम्हारे प्यार ने मुझे शायर बना दिया मालूम है तुम्हें,, तुम्हारे साथ शादी का ख्वाब भी देख ली थी मै --की कैसे शेरवानी में तुम आयोग ओर कैसा लहंगा मै पहुंगी ओर हद तो तब हो गई जब बच्चो तक का सोच  बैठी थी लेकिन  तुम्हें तो मेरा साथ मंजूर नहीं था ।,मै अभी भी यही सोच में सुबह से शाम करती हूं कि कभी तो आयोग तुम वापस। तुम्हारे परिवार को कबसे अपना मान के बैठी हूं ।तुम्हारे दादाजी उनसे मिलने की इच्छा थी बस एक बार।

        तुम्हारे साथ बहुत अच्छा लगता था मुझे दुनिया में बस तुम्हें एक चाहना अच्छा लगता था बहुत ज्यादा इतना की अभी भी  तुम्हें सोच कर जी सकती हूं मै ओर तुम्हारे यादों के साथ पूरा उम्र गुजार सकती हूं।

        मेरे साथ तुम तब तक अच्छे रहे जब तक तुम बस मेरे रहे , कभी लड़ाई नहीं हुआ करती थी और हर जगह साथ  में जाया करते थे कोचिंग रहे या college , कहीं खाने जाना हो हर जगह हमलोग ग्रुुप में ही जाते थे हम तुम और मेरी दोस्त,  बस वही एक मेरी उलझन बन गई थी मेरी जिंदगी की मै ही मिलाई थी तुम्हें और अपनी उस दोस्त  को नहीं जानते थे एक दूसरे को तब तक। फिर उसका हमारे जिंदगी में शामिल होना जैसे अशांति फैल गई थी। तुम्हारी झुकाव उधर बढ़ते जा रहे थे और मेरी तकलीफ । बात बस इतनी थी कि में तुम्हें बाटना नहीं चाहती थी और तुम बस मेरे होके रहना नहीं चाहते थे।

         बस फिर क्या था हमारी बीच लड़ाई बढ़ते जा रही थी बहुत दूर होते जा रहे थे तुम हमसे ओर हमे तुम्हारे साथ रहना था और इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े करती।और यकीन मानो मैंने बहुत कोशिश की बहुत जुगाड किए हर रास्ता अपनाया शब्दो से भी मनाई तुम्हें जो बन पड़ता उस से ज्यादा कोशिश की पर तुम फिर भी ना आए खैर....।लड़ते झगड़ते भी साथ थी मै ओर ख़ुश भी थी बहुत मुझे तो बस तुम्हरे साथ उम्र भर रहना था हर हाल में आज भी मै इसी इंतेज़ार में बैठी हूं कि शायद तुम मुझे बुला लो।

        लड़ाई के बाद भी हम हमेशा बहुत करीब आते रहे ओर हर बार साथ रहने के झूठे वादे करते रहे तुम।

        समझ में नहीं आता और कितना लिखूं मै तुम्हे । उम्र भर तुझे लिखते गुजार दूंगी मै।  तुम बहुत अच्छे थे बहुत अच्छे वक़्त साथ में बिताए है हमलोग ।मै तुम्हारी तारीफ कभी तुम्हारे मुंह पे नहीं की थी और हर वक़्त तुम्हें इसका मलाल रहता था कि मै कभी तुम्हारे बड़ाई तुम्हारे मुंह पे ना करती थी , लेकिन यकीन मानो बहुत प्यार करती थी तुझे ओर बड़ाई भी बहुत की हूं तुम्हारा लेकिन तुम्हारे सामने नहीं!

        तुम मेरे जन्मदिन को बहुत खास बनाए थे केक लाना दोस्ती को बुलाना बहुत खुशी मिलती थी जब तक तुम साथ थे जन्मदिन मानती थी अब नहीं मनाती हूं।

         मुझे बस इस बात का मलाल रहेगा उम्र भर की मेरे इतने प्यार करने पे भी तुम्हें मेरी कद्र नहीं कर पाए हमेशा गिरा हुआ ही समझे उसकी वजह शायद आसानी से मिल गई थी । कोई मोल ही शायद नहीं थी मेरी, तुम्हारी नजरो में तभी तो हर बार छोड़ने का बात कहते रहें एक बार पहले भी मुझे छोड़ चल गए थे फिर वापस भी तुम्हीं आए और आज फिर चले गए  मेरे प्यार को ठुकरा शायद कमी मेरे प्यार में रही होगी की मै तुम्हें वो प्यार नहीं दे पाई , जो प्यार तुमने6मेरे दोस्त से मिला।बहुत गुस्सा आता है खुद पे ना जाने कितनी रातें जाग के गुजार रही हूं, खुद को बहुत चोट पहुंचाई, ना जाने कितनी बार खुद को खतम करना चाहा अवसाद से घिर चुकी हूं पूरी तरह मै।कभी खुद को तुमसे अलग करके सोची नहीं थी, और अचानक से तुम्हारा छोड़ कर मुझे, मेरी दोस्त के साथ चले जाना भीतर से झकजोर कर रख दिया है हमें। मलाल बस इस बात का रहता है की , कभी तुम्हारी खास नहीं बन पाई मै जितना खास सो बनी,सब लूटा कर भी तुम्हारे दिल में वो जगह ना बना पाई जो जगह उसकी है। तुम्हारे लिए हर वक़्त हाजिर रहती थी मै पर कोई कद्र नहीं थी तुम्हें तुम्हारे लिए मरने को तैयार रहती थी मै ओर तुम्हें कोई परवाह नहीं मेरे लिए ।अब बस जहां रहना ख़ुश रहना। मै ये तो नहीं कहूंगी की तुम जिसके लिए मुझे छोड़े हो उसके साथ खुश  रहना क्योंकि मुझसे ये ना हो पाएगा ।बस यही कहूंगी जब भी तुम्हें मेरे पास आना होगा आ जाना क्योंकि जैसे तुम मुझे छोड़ के गए हो वैसे ही पाओगे मुझे तुम,तुम्हारा इंतेज़ार करूंगी जानती हूं नहीं आओगे क्योंकि छोड़ी हुई जगह नहीं जाई जाती है।।। लेकिन जो भी रहे जितना भी साथ रहा बेमिसाल रहा मेरी पूरी जिंदगी की किताब रहा।उम्र भर पढ़ती रहूंगी ओर लिखते रहूंगी तुम्हें ओर तुम्हारे प्यार को ।ओर तुम्हरा इंतेज़ार करती रहूंगी क्योंकि प्यार बेहद और बेशुमार हुआ है तुमसे , फिक्र मत करना जब तक सासें चलेगी मेरी चाहत तुम्हारे वास्ते कम नहीं होगी कभी। और ना ही किसी और को अपने दुनिया में शामिल करूंगी तुम्हारे यादों के साथ ये पूरी जिंदगी गुजार लूंगी।।

            तुम्हारी..........

            क्या नाम लिखूं जब तुम्हारी रही ही नहीं।