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कविता: देश हमारा हिन्दूस्ताँ जाँ हमारी हिन्दी है (जगदीश प्रसाद महावर, जयपुर, राजस्थान)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार जगदीश प्रसाद महावर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “देश हमारा हिन्दूस्ताँ जाँ हमारी हिन्दी है:

अंग्रेजी के दिवानों अंग्रेजी चाहते हो
छोड़ हमारा हिन्दुस्ताँ वहां क्यों नहीं जाते हो
 
देश हमारा हिन्दूस्ताँ जाँ हमारी हिन्दी है
इसके आगे तो तुम्हारी अंग्रेजी भी बिन्दी है
है राष्ट्र भाषा हिन्दी तुम क्यों नहीं चाहते हो
छोड़ हमारा.......
 
सब प्रान्तीय भाषा तो हिन्दी से ही जन्मी है
लेकिन भाषा अंग्रेजी विदेशो की बेटी है
अपनी छोड़ विदेशी अपनाना चाहते हो
छोड़ हमारा........
 
हिन्दी भाषा तो हमारी मातृभाषा है
सहज, सरल और मधुरता इसमें वासा है
अंग्रेजी में अंग्रेजों की गाली चाहते हो
छोड़ हमारा......
 
हाथ जोड़ सम्मान सभी को आदर सिखाती है
प्यार, प्रेम और नम्रता हिन्दी सिखाती है
हाथ मिला बिमारी कोरोना चाहते हो
छोड़ हमारा........
 
मिलजुल कर भाईचारे से जग में रहना है
एकता से सभी को परिवार में रहना है
अपने ही परिवार से बिछुड़ना चाहते हो
छोड़ हमारा......

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