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कविता: तलाक़ (विभा त्रिपाठी, मल्हार सहारा स्टेट गोरखपुर, उत्तर प्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार विभा त्रिपाठी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “तलाक़:

कागजों में रिश्ते तार तार हो गए
दो प्यार करने वाले गुनाहगार हो गए।
किसी की थी नजर लगी
या और कुछ हुआ
सवालों जाबाबो  में सब शुमार हो गए।
अगर जीत भी गया वो,
तो भी हार जायेगा
ना जाने कितने रात दिन
उधार हो गए।
बहुत बुरा हुआ ये सभी जानते थे पर
सबने कहा कि अब
ये समझदार हो गए।
बड़ो ने अपनी जिंदगी का फैसला लिया
मासूमो के भविष्य
दरकिनार हो गए ।
जीने की इतनी हसरतें कि तोड़ सब दिया
ये रिश्ते नाते प्यार सब व्यापार हो गये।
वो आगे बढ़ गया वो जिया जिंदगी मगर
जो छूट गया उसके दावेदार हो गए ।

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