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कविता: हम, हिंदी और हिन्दुस्तान (डॉ महावीर प्रसाद जोशी, सुभाष नगर, विस्तार, पश्चिम भीलवाड़ा, राजस्थान)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ महावीर प्रसाद जोशी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हम, हिंदी और हिन्दुस्तान:
 
 
'' से हम,''से हिंदी, और,
                    '' से ही हिन्दुस्तान है।
हिंदी है जन जन की भाषा,
                इसीसे देश की पहचान है।
प्रधानमंत्री जी हैं हिंदी भाषी,
पर प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी।
होती है हिंदी भाषा की अनदेखी,
लालफीताशाही की यह मनमर्जी।।
जबकि जापान और चीन उसकी,
            भाषा से ही हुआ बलवान है।
हिंदी है जन जन की भाषा,
             इसीसे देश की पहचान है।।
 
हो कोठारी आयोग या यशपाल समिति
टी.एस.आर सुब्रमण्यम या कस्तूरीरंगन।
हार गये हिंदी का हक जतलाकर,
तो अब नौकरशाही को पहनाओ कंगन।।
भारत में हिंदी की भलाई हित,
              अब भोला भगवान है।
 
हिंदी है जन जन की भाषा,
               इसीसे देश की पहचान है।
 
छंद गढ़ो या गढ़ो कुण्डलियां,
अलंकारों का उनमें लगे बघार ।
सरल व्याकरण इस भाषा की,
लिपि देवनागरी इसका आधार।।
माधुर्यता से ओतप्रोत है हिंदी,
               विविध  रसों की खान है।
हिंदी है जन जन की भाषा,
             इसीसे देश की पहचान है।।
 
संस्कृत है देवों की वाणी,
हिंदी इसकी इकलौती पुत्री है।
ब्रह्मा के वरदान से  पोषित,
सोशल मीडिया में खरी उतरी है।।
वसुधैव कुटुंबकम् भाव से होता,
                हिंदी का गुणगान है।
हिंदी है जन जन की भाषा,
               इसीसे देश की पहचान है।
 
संस्कार सिखाती, अपनत्व जगाती,
झंकृत होती वीणा के तारों में ।
माँ शारदे इसको रोशन करती,
कवियों में, साहित्यकारों में। ।
कई भाषाओं के शब्द समेटे,
           हिंदी विश्व-पटल  की शान है।
हिंदी है जन जन की भाषा,
          इसीसे देश की पहचान है। ।
 
अंग्रेजी से जो भी उकताया,
उसे हिंदी ने स्वीकार किया।
पाठक प्रतिदिन बढ़ती ही जाते,
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अंगीकार किया।
विश्व में वैभव हिंदी का बढ़ रहा,
              इठलाता हिन्दुस्तान है।
हिंदी है जन जन की भाषा,
             इसीसे देश की पहचान है। ।
 
तमिल,तेलगु और गुजराती,
समृद्ध हिंदी का भण्डार भरे।
हर भाषा समाती इस सागर में,
यह राष्ट्र की भी हुंकार करे।।
कर्मचारी, अधिकारी जो सम्मानित होते,
              वह हिंदी का सम्मान है।
हिंदी है जन जन की भाषा,
            इसीसे देश की पहचान है। ।
 
हिंदी में हो हर काम आज से,
वर्चस्व क्षितिज पर इसका अपना हो।
बीजारोपण, अंकुरण, और पल्लवन,
हिंदी ही हर राष्ट्र का सपना हो ।।
जल,थल,नभ में बजे डंका हिंदी का,
                 अब यही शेष अरमान है।
हिंदी है जन जन की भाषा,
              इसीसे देश की पहचान है।।


हिंदी हमारी मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा-

        मैं पाँच पुत्रियों एवं छठे एकमात्र पुत्र का पिता हूँ,सभी संतानें उच्च शिक्षित होकर प्रसन्नता से जीवन-यापन कर रहीं हैं। मैंने किसी को भी अंग्रेजी माध्यम में नहीं  पढवाया। हाँ, यदि नाती और पौत्रादि ऐसा कर रहे हैं, तो मेरा दोष नहीं है। 
       हमारे बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोले,यदि इस वास्ते हम उनको कान्वेंट स्कूलों में प्रवेश दिलाते हैं, तो यह हमारी भूल है। फर्राटेदार अंग्रेजी बोली ही इसलिए जाती है कि भाषा की अशुद्धियों को छिपाया जा सके।अंग्रेजी ही क्यों, यदि हिंदी भी फर्राटे के साथ बोली जाये ,तो अशुद्धियाँ पकड़ से बाहर हो जाती हैं। वाहन की गति जितनी द्रुत होगी,दुर्घटना का खतरा उतना ही अधिक होगा। वह अंग्रेजों का ज़माना था जब केवल अंग्रेजी पढ़े लोग अच्छा पद पाते थे।हम आज भी उसी भूतकाल में जाकर अपने बच्चों को क्यों मूर्ख बनाने पर तुले हुए हैं? 
        अंग्रेजी तो एक निकृष्ट भाषा है। अंग्रेजी के किसी विद्वान ने गंगा की स्पेलिंग गलत लिख दी तो उसे स्वीकार कर लिया गया, किसी ने पंजाब के पहले the लगा दिया तो कारण बता बैठे कि वहाँ पाँच नदियाँ  बहती हैं,हमारे राजस्थान में कई नदियाँ बहती हैं,लेकिन the नहीं लगता। कैंची, पजामा आदि शब्दों के पीछे अंग्रेजी में बहुवचन की तरह s लगता है, कारण कि ये दो से निर्मित हैं।क्या कमीज,कोट,में दो आस्तीन नहीं होती,इनके पीछे s क्यों नहीं लगता? पेन्ट तो पजामे का ही रूप है,इसपर भी s नहीं लगता। कान्वेंट स्कूल में जेण्डर पढ़े बच्चे नहीं जानते कि  
'जनाना ' स्त्रीलिंग है, वे इसका स्त्रीलिंग 'जनानी' बनाते हैं, वे साले की पत्नी को साली कहते हैं, सलहज नहीं।  यह किसका दोष है? अंग्रेजी भाषा तो इतनी संकीर्ण है कि रोटी, बाटी,परांठा
फुलका, पूड़ी,सभी के लिए केवल एक शब्द bread है,छप्पन भोग की मिठाईयों के लिए केवल एक शब्द Sweets है, ससुराल पक्ष के रिश्तों हेतु शब्द ही नहीं है,in law लगा कर काम चलाया जाता है, यदि in law से भी बात नहीं बने तो looser या gainer अतिरिक्त जोड़ते हैं।अंग्रेजी के किसी विद्वान से 'दामाद' की अंग्रेजी पूछो तो सही। मनोरंजन तो तब होता है, जब विधि-व्याख्याता भी अपने पद के बाद in law लगाता है। हिंदी के विविध रस,अलंकार, और छंदों हेतु अंग्रेजी मौन है, रोमन अंग्रेजी से काम चलता है। 
          सबसे प्राचीन भाषा हिबू में मात्र 22 वर्ण,ग्रीक में  24,अंग्रेजी में 26,अरबी में 28, जर्मन में 32,तो रूसी में 33 वर्ण हैं,जबकि  हिंदी वर्णमाला में संयुक्त वर्णो क्ष,त्र,ज्ञ,और ॠ, सहित 37वर्ण हैं, अन्य संयुक्त वर्णो प्र,ग्र,द्र,भ्र,श्र, भी मौजूद हैं। हर वर्ण पर बारह मात्राओं उपरांत यह संख्या बारह गुणा बढ़ जाती है। ध्यान रहे कि संस्कृत वर्णमाला में 66 वर्ण,प्राकृत वर्णमाला में 50, आर्षेय वर्णमाला में 97, तो छंदस वर्णमाला में 187 वर्ण हैं।अंग्रेजी के तो 26 एल्फाबेट में भी 'Q'अपाहिज है, जिसके साथ u लगाये बिना  काम नहीं चलता। हमारी हिंदी भाषा में शब्दों की संख्या अनगिनत नहीं अनंत है, जिसे एक शब्दकोश तो क्या शब्दकोशों की श्रृंखला भी नहीं  समेट पाती। अन्य भाषा से आये शब्द और  बोल-चाल में प्रचलित अशुद्ध शब्द ही करोड़ों में  है, जिनको विद्वान लोग व्याकरण के अनुसार यद-कदा सही करते रहते हैं। यही नहीं, हिंदी में  एकाक्षर शब्दों का भी एक अलग  शब्दकोश है जैसे, ख,भू, श्री, ॠ आदि।विश्व की कोई भी भाषा हिंदी के जितनी धनाढ्य नहीं है, हमको इस भाषा पर गर्व करना चाहिए। 
          हिंदी हमारी मातृभाषा है, जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने में  हमारी सरकारों ने बहुत विलम्ब किया। मातृभाषा इसलिए है कि बच्चा  जन्म लेते ही रुदन अवश्य करता है और उसके रुदन में जो स्वर निकलते हैं, वे अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ ही होते हैं, न कि अंग्रेजी के एल्फाबेट। परिजन जब जन्मोत्सव पर खुश  होते हैं तो वे भी ह,हा, हि,ही, इत्यादि का ही प्रयोग करते हैं, चाहे वे भारत के किसी भी राज्य के निवासी क्यों न हो।  इस प्रकार हिंदी भाषा राष्ट्रीय एकता का भी समर्थन करती है। 
   "जय भारत, जय हिंदी "

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