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कविता: राष्ट्रभाषा (मुनमुन ढाली, रांची, झारखंड)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मुनमुन ढाली की एक कविता  जिसका शीर्षक है “राष्ट्रभाषा:

राष्ट्रीय भाषा हमारी हिंदी है
अंग्रेजी का भी दिल से सम्मान करते हैं
पर
,,,,ग माथे पर गढ़वा कर लाए हैं
बहुत अवहेलना सह चुके
अब कमर कसने की तैयारी है
हिंदी है हम
हिंदी में अध्ययन
हिंदी का उत्थान
अब यह पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी है
हिंदी बोलने से कतराए ना
हेलो(hello) की जगह नमस्ते से शरमाए ना विद्यालयों में हिंदी ऑप्शनल ना हो
सिर्फ पास मार्क्स लाने तक सीमित ना हो
दिनकर ,मुक्तिबोध ,प्रेमचंद आदि की किताबें पाठ्यक्रम में शामिल हो
कुछ पाखंडीयो ने
हिंदी भाषा को धर्म से जोड़ दिया
और
हिंदी को मुख्यधारा से तोड़ दिया
उनके लिए यह आह्वान है
भाषा धर्म नहीं
अपितु पूरा का पूरा ज्ञान का भंडार है
मानती हूं और जानती भी हूं
ग्लोबल मैप पर पहचान बनाने में
अंग्रेजी नितांत जरूरी है
पर
अपनी हिंदी का अनादर स्वीकार्य नहीं
कवि दिनकर के समर अभी शेष है
हिंदी भाषा का स्थानांतरण की उपलब्धि भी अभी शेष है
कवि सोहन लाल द्विवेदी  कथनी को कैसे टाले  कि
हम कोशिश भी ना करें
यह तो गलत बात है
जोरदार कोशिश अपनी जरूर असरदार होगी
हिंदी आज नहीं तो कल
मुख्यधारा में प्रवाह जरूर लेगी
इच्छा !यह अब हमारी बहुत प्रबल है

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