पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी
जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका
स्वागत है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार शिखा झा की एक कविता जिसका शीर्षक है “ढिंढोरा “हिंदी दिवस”":
साल में एक ऐसा दिवस भी आता है
जो मात्र दिवस बन रह जाता है
कहने को हम हिंदी दिवस मनाते हैं
किंतु हिंदी का मोल समझ नहीं पाते हैं
अंग्रेजी बोल हम पढ़े-लिखे बन जाते हैं
हिंदी बोल हम खुद को हे दृष्टि में ही पाते हैं
सम्मान पाने को हम अंग्रेजीपन तो अपनाते हैं
वही मातृभाषा को घुटने के लिए छोड़ जाते हैं
हिंदी दिवस आते ही हम नकलीपन दिखलाते है
सालभर अंग्रेजी का गुण गाते हैं
और ढिंढोरा हिंदी दिवस का पीटने चले आते हैं
आयोजन, समारोह, संगोष्ठी में हिंदी को ही नचवाते है
और बचाने की जब बात होती है
अपनी संतानों को “हाय” “हेलो” करना सिखलाते है
याद करें थोड़ा कुछ वर्षों पहले की ही बात होगी
मां की लोरी किससे थी
दादी नानी की कहानी किससे थी
प्यार दुलार के शब्द किससे थे
बचपन की तुम्हारी शिक्षा किससे थी
शर्म करे ख़ुद पर थोड़ा तो सम्मान करे
अपना ना सके हिंदी को तो
कम से कम ना अपमान करे
इतना ही कर दे हम , हिंदी पर उपकार
चाहें बोलो इंग्लिश मग़र रखो हिंदी का भी ज्ञान ।
साल में एक ऐसा दिवस भी आता है
जो मात्र दिवस बन रह जाता है
कहने को हम हिंदी दिवस मनाते हैं
किंतु हिंदी का मोल समझ नहीं पाते हैं
अंग्रेजी बोल हम पढ़े-लिखे बन जाते हैं
हिंदी बोल हम खुद को हे दृष्टि में ही पाते हैं
सम्मान पाने को हम अंग्रेजीपन तो अपनाते हैं
वही मातृभाषा को घुटने के लिए छोड़ जाते हैं
सालभर अंग्रेजी का गुण गाते हैं
और ढिंढोरा हिंदी दिवस का पीटने चले आते हैं
आयोजन, समारोह, संगोष्ठी में हिंदी को ही नचवाते है
और बचाने की जब बात होती है
अपनी संतानों को “हाय” “हेलो” करना सिखलाते है
मां की लोरी किससे थी
दादी नानी की कहानी किससे थी
प्यार दुलार के शब्द किससे थे
बचपन की तुम्हारी शिक्षा किससे थी
अपना ना सके हिंदी को तो
कम से कम ना अपमान करे
इतना ही कर दे हम , हिंदी पर उपकार
चाहें बोलो इंग्लिश मग़र रखो हिंदी का भी ज्ञान ।


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