पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार आशा शुक्ला की
एक लघुकथा जिसका
शीर्षक है “ये कैसी
पूजा":
सुधा अपने सहेली रजनी के घर उससे मिलने गई
थी।वहाँ वह .... उसकी सास की धार्मिक भावना से बहुत प्रभावित हुई ।
बड़े सबेरे उठ कर नहा- धोकर पूजा करने में
लग जाती है...तो दो घंटे से पहले नहीं निपटतीं। फिर माला जपती है।
अभी भी माला जप रही थी ...तभी उनकी पड़ोसन
शिवम की मम्मी आ गई। थोड़ी देर इधर-उधर की बातें होती रहीं फिर वह रजनी से बोली ,:-"'पता है !!क्या हुआ कल रात ??वह मेहता साहब की छोरी भाग गई!!!
रजनी की सास माला जपते- जपते बोली:-' उसके तो लक्षण ही ऐसे थे !!!और पुनः माला जपने लगी !!तब तक कुछ ध्यान आया तो
वह बाहर की तरफ मुँह करके चिल्लाई :-'ओ रे
गोलुआ !!जा रे ज़रा भगवान जी वाला घी ले आ!!
भगवान जी वाला घी???? सुधा चक्कर में पड़ गई।
हाँ!!रजनी ने बताया वह थोड़ा सस्ता मिलता
है ...तो पूजा के काम आ जाता है ।अब वह फिर माला जपने लगी थी। सुधा उनकी पूजा विधि
को बड़े गौर से देख रही थी।
माला जपना बंद करके अब वह भोजन करने बैठी।
अचानक वह चिल्लाई इस मनहूस को सामने से हटाओ !!! टुकुर टुकुर ताक कर खाने को नजर
लगा देगा।हजम भी नहीं होगा।
दरवाजे पर पाँच-छः साल का बेहद प्यारा
लड़का खड़ा दिखाई दिया।वह अंदर आ गया।
रजनी की सास ने उसे डांटा ,:-"तुमने इसे सिर पर बिठा रखा है। जब देखो तब नाक
पर चढ़ा रहता है । और इतना कहते हुए उस लड़के को झकझोरा वह रोने लगा।
फिर वह उसकी बांह पकड़ कर घसीटते हुए
दरवाजे के बाहर कर आईं। दरवाजा बंद कर लिया फिर इत्मीनान से भोजन करने बैठी।
रजनी ने बताया कि दो महीने पहले इसकी माँ का बीमारी के कारण देहांत हो गया था।
इसके यहां जब खाना नहीं बना होता है तब
यहां आ जाता है।तो कभी-कभार खिला देती हूं।
सुधा के मन मे रजनी की सास की "भक्ति
भावना"और "पूजा" के प्रति जो श्रद्धा उत्पन्न हुई थी वह एकाएक
तिरोहित हो गई वह सोचने लगी :--"यह कैसी पूजा है????
एक निरीह अनाथ को जो बाँह पकड कर बाहर
धकेल दे।माला जपते समय किसी लड़की के प्रेम-प्रसंग का जिक्र करने लगे और फिर से
माला जपने लगे।
क्या भगवान इनकी पूजा स्वीकार करते होंगे ????वह गहन सोच-विचार में थी।
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