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कविता: खिलौना माटी का (सरिता श्रीवास्तव, बर्नपुर, आसनसोल, बर्धमान, पश्चिम बंगाल)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सरिता श्रीवास्तव की एक कविता  जिसका शीर्षक है “खिलौना माटी का":

मत कर इतना अहंकार इस तन पर,

मिट जाएगा तू एक दिन यही पर।।

 

इर्ष्या, लोभ, घमंड मत कर इतना,

जीते जी संतुष्ट नहीं रह पाएगा उतना।।

 

बना नाम बड़ा इस जग में आया है,

चुका दे मोल इस जीवन का जो पाया है।।

 

राग प्रेम, त्याग का रस जरा बरसा जा,

अभी भी है वक़्त जरा तो सम्भल जा।।

 

देख जरा खुशी सबमें तु बाँटकर ,

होगी तृप्त आत्मा तेरी देख अंदर झांक कर।।

रचा है विधाता ने यह ऐसा लेख,

बना डाला यहाँ जीवन मृत्यु का खेल।।

 

होगा उसके पास तेरे सारे कर्मों का लेखा जोखा,

मत इतरा इतना वहाँ जाकर तेरे साथ हो ना जाए धोखा।।

 

अंत कर अभी से अंदर की सारी बुराइयों का,

खाक में तो मिलना ही है खिलौना माटी

खाक में तो मिलना ही है खिलौना माटी का।।

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