पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार राजीव रंजन की एक कविता जिसका शीर्षक है “प्रभात बेला":
सूरज की लालीमा से आकाश हुआ लाल है,
शीतल समीर का अहसास बेमिसाल है ।
चहचहा रही चिड़ियाँ कह रही है सुप्रभात,
होनेवाली है सुबह विदा ले रही है रात ।
बिखरे पड़े हैं मोती हरी-हरी घास पर,
गूँज रहा मंदिरों में घंटी का मधुर स्वर ।
प्रकृति की छवि का अद्भुत नजारा है,
खिल गई है कलियाँ उपवन कितना प्यारा है।
'अमृत-बेला' में जो जाग जाता है,
विद्या,बुद्धि व स्मरण शक्ति पाता
है।
प्रातःकाल उठता करता है योग,
उसका शरीर सदा रहता निरोग ।
नव-प्रभात जीवन में नव-ऊर्जा भरता है,
बिना कठिन श्रम के जीवन कहाँ संवरता है।
जागो 'प्रभात बेला' में तोड़ो आलस्य के घेरे,
हरि-स्मरण करो उठकर सुबह-सबेरे ।