पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पूनम कुमारी की एक कविता जिसका शीर्षक है “मंज़र":
बड़ा अजीब मंज़र था वो मेरी जिंदगी का,
जहाँ मुझे कुछ भी समझ न आ रहा था।
बड़े चैन से सो रही थी मैं,
और मुझे आंसूओ का सैलाब लिए जगाया जा रहा था।
सफ़ेद कपड़ो में लपेटकर मुझे,
फूलों का बिस्तर सजाया जा रहा था।
बड़ा अजीब मंज़र था वो मेरे घर का,
जहाँ मुझे कुछ भी समझ न आ रहा था।
हज़ारो की भीड़ खड़ी थी सामने
और मुझे
मुझे लेटाया जा रहा था।
मोहब्बत तो मोहब्बत ,
नफ़रत करने वालो के आँखों से भी आँसू बहाया जा रहा था।
बड़ा अजीब सा मंज़र था वो मेरी जिंदगी का,
जहाँ मुझे कुछ भी समझ न आ रहा था।
दुनिया से टकराने की ताकत थी मेरे भाई मे,
आज उसके कंधो से मेरा बोझ तक न उठाया जा रहा था।
रूह तक कांप उठी मेरी उस पिता को देखकर,
जो कभी खरोच भी न बर्दाश्त करते थे मुझपर,
आज उन्ही के हाथों मुझे जलाया जा रहा था।
तो अब समझी थी मैं
वो मंज़र मेरी जिंदगी का नही ,
मंज़र था मेरी मौत का।
जब मुझे हमेशा के लिए भुलाया जा रहा था।।