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कविता: हिंदी हमारी मातृभाषा (संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया, भोपाल, मध्यप्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हिंदी हमारी मातृभाषा:

हिंदी भाषा की पूर्ण वर्णमाला ।
हिंदुस्तान की अमूल्य रत्न ।
अनमोल धरोहर है ।
हिंन्द देश के निवासी ।
हम सभी हिंदुस्तानी ।
हिंदी भाषा प्रेमी हैं ।
 
हिंदी भाषा हिंदुस्तान के ।
भाल की सुंदर बिंदी सम ।
शोभायमान है, हिंदी भाषा ।
महिमा अपरंपार ।
हिंदी भाषा बोलना ।
जहां आरंभ हो ।
 
वहां पुष्प सुमन खिल ।
उठते हैं, हिंदी भाषा ।
ज्यो कर्ण श्रवण करें,
त्यों मिश्री रस सम पहुंचे ।
हिंदी भाषा स्वर व्यंजन ।
पर आधारित हो ।
 
करती नित नव-नव ।
शब्द सृजन,शब्दों के मेल ।
करते नव वाक्य सृजन ।
प्रत्येक हिंदुस्तानी नागरिक का।
हिंदी मातृभाषा पर गर्व करना ।
अति अनिवार्य लगता है ।
 
कभी-कभी गणित विषय ।
हिंदी विषय में पाठों की संख्या ।
हिंदी अंक के स्थान पर अंग्रेजी ।
अंक लिखें पाकर लगता ऐसा ।
मानो भावी पीढ़ी हिंदुस्तानी ।
होते हुए हिंदी अंको को ।
विस्मृत करने को विवश ।
 
हिंदी अंक अमूल्य धरोहर ।
हमारी अपनाने से वंचित हो ।
हिंदी अंक भी व्याकुल हो ।
अश्रु बहाते प्रतीत होते ।
संगीता सूर्यप्रकाश का उर ।
अति संतापित हो अश्रु ।
 
बहाने को हुआ विवश ।
याचना करता निरंतर ।
हिंदी हमारी मातृभाषा ।
अमूल्य धरोहर को सकल ।
हिंदुस्तानियों को मिलकर ।
सहेजने का प्रयत्न कर ।
सुरक्षित बचाना है ।

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