पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी
जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका
स्वागत है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रमोद कुमार वर्मा साधक की एक कविता जिसका शीर्षक है “हिन्दी मेरी भारत माता":
हिन्दी अपनी हिन्दी है
न राजस्थानी न सिंधी है।
हिन्दी मेरी भारत माता के
माथे सुंदर की बिंदी है।
है गर्व हमें कि हिन्द देश के
हम मूल निवासी हैं।
हिन्दी है रामलला हिन्दी
प्रयाग व काशी है।।
संपूर्ण विश्व में भाई
अपनी भाषा जिन्दी है।
हिन्दी मेरे भारत माता के
माथे की सुंदर बिंदी है।
हिन्दी श्याम हिन्दी तुलसी
हिन्दी अपनी मीरा है।
हिन्दी बसी है रोम-रोम में
हिन्दी सकल शरीरा है।
करते है सबका आवाह्न
आज हिन्दी दिवस हिन्दी है।
हिन्दी मेरी भारत माता के
माथे की सुंदर बिंदी है।
जो हिन्दी का अपमान करें
वह देश का भार है।
हिन्दी हित जो ना प्राण गवाये
वह देशी मक्कार है।
है हिन्दी शून्य के नीचे
नभ से ऊंचे हिन्दी है।
हिन्दी मेरी भारत माता के
माथे की सुंदर बिंदी है।
हिन्दी से ही भाव भरे
हिन्दी ही सर्वज्ञानी है।
मेरी प्यारा भाषा हिन्दी
हिन्दी हिंदुस्तानी है।
मां! बालक पहला शब्द पुकारे
यह भी तो हिन्दी है।
हिन्दी मेरी भारत माता के
माथे की सुंदर बिंदी है।
हिन्दी हित में दो शब्द लिखूं
मैंने कलम उठाया है।
स्वीकार करो हे हिन्दी वालो
साधक शरण में आया है।
सब कोई इसका भेद न
समझें हिन्दी कि जो बिंदी है।
हिन्दी मेरे भारत माता के
माथे की सुंदर बिंदी है।
हिन्दी अपनी हिन्दी है ना
राजस्थानी ना सिंधी है।
न राजस्थानी न सिंधी है।
हिन्दी मेरी भारत माता के
माथे सुंदर की बिंदी है।
हम मूल निवासी हैं।
हिन्दी है रामलला हिन्दी
प्रयाग व काशी है।।
संपूर्ण विश्व में भाई
अपनी भाषा जिन्दी है।
हिन्दी मेरे भारत माता के
माथे की सुंदर बिंदी है।
हिन्दी अपनी मीरा है।
हिन्दी बसी है रोम-रोम में
हिन्दी सकल शरीरा है।
करते है सबका आवाह्न
आज हिन्दी दिवस हिन्दी है।
हिन्दी मेरी भारत माता के
माथे की सुंदर बिंदी है।
वह देश का भार है।
हिन्दी हित जो ना प्राण गवाये
वह देशी मक्कार है।
है हिन्दी शून्य के नीचे
नभ से ऊंचे हिन्दी है।
हिन्दी मेरी भारत माता के
माथे की सुंदर बिंदी है।
हिन्दी ही सर्वज्ञानी है।
मेरी प्यारा भाषा हिन्दी
हिन्दी हिंदुस्तानी है।
मां! बालक पहला शब्द पुकारे
यह भी तो हिन्दी है।
हिन्दी मेरी भारत माता के
माथे की सुंदर बिंदी है।
मैंने कलम उठाया है।
स्वीकार करो हे हिन्दी वालो
साधक शरण में आया है।
सब कोई इसका भेद न
समझें हिन्दी कि जो बिंदी है।
हिन्दी मेरे भारत माता के
माथे की सुंदर बिंदी है।
हिन्दी अपनी हिन्दी है ना
राजस्थानी ना सिंधी है।


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