पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मौसमी चन्द्रा की एक कहानी जिसका
शीर्षक है “इंसान":
कमाठीपुरा!
मुम्बई की एक गन्दी तंग गली।कहने को तो मुम्बई के मालाबार हिल,कोलाबा वर्ली और मझगांव जैसे पॉश इलाकों से घिरा।पर डेवलपमेंट के नाम पर जीरो।
बोले तो बदनाम गली!
जहाँ शरीफ लोग थूकने भी नहीं आते।
चन्द महीनों पहले तक ये गली गुलजार थी।सांस लो तो इत्र फुलेल की खुशबू ही खुशबू।
पर अब तो भूखों मरने की नौबत आ गयी।देह का व्यापार बन्द तो पेट की आग बुझाना भी मुश्किल!
इन्हीं गलियों के बीच एक खोली में चंदा दीवार पर टँगी बप्पा की फ़ोटो के आगे हाथ जोड़े खड़ी है--
डबडबाई आँखें मन ही मन गुहार लगा रही थी।पीछे बिस्तर पर चार साल का बच्चा बेसुध पड़ा था।अंतड़ियाँ धँसी हुई।पास बैठो तो पेट से गुड़गुड़ की आवाज़ सुनाई दे।
--पीछे से उसकी मुंहबोली बहन बिंदिया दीदी का मार्मिक स्वर गूंजा।
अब तो मन करता है उसी नशे का इंजेक्शन दे दे कोई, और भूल जाऊं भूख से बिलखते बच्चे को, इस नर्क को..."
तभी..!
--छोटू दौड़ते हुए आया।
सुनकर चंदा में जाने कहाँ से फुर्ती आयी।तेज़ी से दौड़ पड़ी ।बाहर कुछ लोग मास्क लगाए, दस्ताने पहने सबको खाने के पैकेट दे रहे थे।
जैसे ही चन्दा के हाथ में पैकेट रखा।उसके भीतर जमा दर्द बहने लगा--
"भगवान आपलोग का भला करें।"
उनमें से एक ने कहा।
अरे खाना! मिल गया तुझे?किसने दिया?