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कविता: हिंदी से प्यार था (सुशील कुमार सिंह, कोलकाता, पश्चिम बंगाल)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सुशील कुमार सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हिंदी से प्यार था:

हिंदी से प्यार था!
जब तक उसे पा न लिया
और अब जब पा लिया हैं,
तो लापरवाह हूँ
हिंदी साहित्य परिवार का कसूरवार हूँ।
पूर्णतः इसे न अपनाने का गुनहगार हूँ।
 
मैं आज भी इस कशमकश में जिता हूँ,
इस सवाल की खोज में जिता हूँ,
मेरे लिए ये हिंदी हैं क्या
मेरा प्यार हैं या मेरी पहचान हैं?
भाषा हैं या सिर्फ़ एक ऐहसास हैं?
मेरी त्याग और तपस्या का ईनाम हैं।
क्या वर्षों-वर्ष का इंतज़ार हैं ?
या ये हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद हैं ?
हैं क्या...?? क्या हैं  हिंदी हमारे लिए?
 
कहने को ये कहानी नई नहीं हैं, पर
इसकी ख़बर भी हर किसी को नहीं हैं।
मौन बैठें हैं सब अपने-अपने ज्ञान को दबा।
पायी शिक्षा इसी की, दिक्षा इसी की,
प्राप्त भिक्षा भी इसी से, फिर भी निःशब्दता छायी
क्यों यह अपने हक की लड़ाई भी ना लड़ पायी!
 
जवाब मिला मुझे...
ये हिंदी हैं,
जो अपने अधिकार को भी
अपने ज्ञान से प्राप्त न कर पायी हैं,
कहने को हिंदी में पढ़ाई हैं,
भविष्य में कुछ ना कर पायी हैं,
देश-विदेश घूम आयी हैं।
अपने घर ही पराई हैं,
पर  हाँ!
ये वही हिंदी हैं,
जो इतनी विविधता में भी
मुस्कुराई हैं ।

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