पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार नीलम वन्दना की एक लघुकथा जिसका शीर्षक है “काव्यान्जली":
अपने फ्लैट की बालकनी मे बैठ के चाय पीते हुए मैं काव्यांजलि के बारे मे सोचते हुये अतीत में चली गयी थी। काव्यांजलि
कल तक 13 वर्ष की कितनी प्यारी, मासूम और चुलबुली सी बच्ची थी । पूरी काॅलोनी की रौनक उससे बरकरार रहती थी। काव्यांजलि के होते काॅलोनी का कोई शख्स दुखी या परेशान नहीं रह सकता था। वह हर समय सबकी मदद के लिये हंसते हुए तैयार रहती थी ,और आज जब उसे मदद की जरूरत है...........तब !!! तब सब अपनी अपनी महानता की गाथा सुना रहे थे और स्वार्थ की रोटियाँ सेकने में व्यस्त हो गये थे। वो कितना रोई , चीखी ,चिल्लाई थी । लेकिन किसी ने ना सूनी उसकी चीखे !! उन दरिन्दों ने कितनी बेदर्दी से नोच डाला था उस मासूम के पैरों को, उसकी जिव्हा को काट दिया था और हड्डियों के कई टुकड़े कर डाले !! उफ्फफ........
सोचते हुये एकदम से एक झटका सा लगा कि अरे ये क्या कर रही हूँ मैं ? आज काव्यांजलि को हम सबकी , सबसे ज्यादा जरूरत है , मेरी बच्ची दर्द से कराहते हुये पुकार रही और हम सब यू बैठ कर चाय पी रहे हैं, टेलीविज़न पर उसके दर्द का कैसे पोस्टमार्टम होता देख रहे। नहीं अब और नहीं देख सकती मेरी बच्ची मैं आ रही हूँ तेरे पास। अब बिल्कुल भी परेशान ना होना । मैं साथ हूँ तेरे ..आज भी .... कल भी और हमेशा... तेरे साथ ही रहूंगी।
मेरी बच्ची यू नहीं हारने दूंगी तुम्हें , तेरे साथ दरिन्दगी करने वालों को ऐसी सजा दिलाऊंगी कि सहम जायेगी ये दरिन्दों की सारी क़ौम..... फिर कोई और काव्यांजलि नहीं होगी दरिन्दगी का शिकार.... आज मेरी बच्ची मैं तेरी माँ हूँ।