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कविता: बेटी पढाओ, बेटी बचाओ (चंद्रकला भरतिया, नागपुर, महाराष्ट्र)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार चंद्रकला भरतिया की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बेटी पढाओ, बेटी बचाओ”: 

जागो देशवासियो जागो
अपना जमीर आज जगाओ
समय आ गया  जागो।
अब नही जागे तो कब जागोगे ?
अपनी जली को सभी बुझाते
'पर' की बेटी को  दो सम्मान
जब आग लगी दूजे के घर मे
तो क्या  तुम बच जाओगे ?
 
खूब पढाओ बेटी को ,उच्च शिक्षा संस्कारो से योग्य बनाओ ।
साथ  मे जूडो कराटे
सैनिक शिक्षा, पहलवानी के
दांव-पेंच सब कुछ
सिखलाओ बेटी को ।।
नित्य कसरत योग से शक्तिशाली बनाओ।
खान पान का ध्यान रखो
पौष्टिक आहार,दूध घी सूखे
मेवे की खुराक प्रतिदिन दो उसको।
घरेलू कामो मे ही न खपाओ
तुम  उसको।
 
चाकू,लाठी,छुरिया अस्त्र-शस्त्र, पिस्तौल चलाना
सब कुछ सिखलाओ उसको
मोटरसाइकिल चला सके वह
चार-पांच को हरा सके वह
ऐसा फौलादी बदन
हिमालय -सी हिम्मत दो उसको।।
कोमल नाजुक, सजावटी गुड़िया ना बनो बेटी
आत्म रक्षा के लिए तत्पर
रहो हरदम  बेटी ।
मजबूत इरादो,कठोर संकल्प
शक्ति का पाठ नित्य दोहराओ
 
समय बड़ा ही विकट आ गया
हर गली-मोहल्ले आसपास मे
वहशी दरिंदे मंडराते हर दिन
नोचने लूटने को तत्पर ।
जब झांके  हम अपने घरो मे
तो शर्मिंदगी आती  हमको
चाचा,मामा,फूफा, जीजा
चचेरे, ममेरे, मौसेरे भाई
ललचाते देख बहन-बेटी को
नियत मे है खोट आ गया
विश्वास चकनाचूर हो गया
टूटी रिश्तो की डोरी है ।
 
बेटी चाहे हो छोटी, बडी या कि  उम्रदराज, असुरक्षित है
वह घर-बाहर  चहुँओर।
"बेटी बचाओ "अभियान ने
चोला ओढा राजनीति और
मतलब परसती का
इनसे कुछ ना हो पाएगा ।
 
आए दिन कयी 'निर्भया'हो रही शिकार
गंदी बीमार मानसिकता  की
ऐसे मे बेटी, तुम ही रक्षक बनो
अपनी। जब कभी ये वहशी,
दरिंदे, भेड़िए करने शील भंग
बढे आगे ।
नोचलो काटलो उनका
वहशी अंग
पिस्तौल रखो पास सदा
भून दो गोलियो से उनको
जरा न तुम घबराना बेटी
तुम दुर्गा हो,काली सशक्त हो
 
गूंगे -बहरे पंगु,मृत समाज मे
रक्षा की गुहार ना करो तुम बेटी
गुनहगार तुम्हारा है वह
तुरंत ही फैसला कर देना तुम
तुरंत ही फैसला कर देना तुम